काशी की लकीरें

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sima jain
जब से नशामुक्ति अभियान से जुड़ी, तब से ही काशीबाई को जानती हूँ। तीन बच्चे और शराबी पति, जो हर रोज़ अपनी तो अपनी,काशीबाई की मज़दूरी के पैसे भी ज़हर में डुबो देता।
काशीबाई कभी केवल रोटी, कभी नमक-चावल खाकर तो कभी भूखी रहकर अपने दिन काट रही थी।
आज काशीबाई मुझे अपनी झोपड़ी में ले जाने की जिद करती बोली,-‘दीदी, चलो न! आज बहुत दिन बाद रोटी के साथ भाजी बनाई है।’
ज़मीन पर बैठी मैं काशी को देख रही थी। उसके चेहरे की खुशी ने मुझे सुकून दिया।
चूल्हे के ऊपर कोयले से खिंची लकीरों ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। मैंने पूछा,-‘ये लकीरें कैसी हैं काशी?’
वह बोली,-‘दीदी, हम अनपढ़ अपने पैसों का हिसाब कैसे रखें? ये लकीरें उसी के लिए हैं। पैसे मिलते तो एक लकीर बना देती और मर्द ने कमाई ले ली तो लकीर काट देती।’
मैंने लकीरों को ध्यान से देखा और कहा,-‘काशी, इनमें तो ज्यादा लकीरें कटी हुई हैं।’
काशी ने चहकते हुए कहा,-‘ऊपर नहीं, नीचे देखो दीदी, यहाँ लकीरें नहीं कटी…दीदी, तुम्हारी बातें सुनकर तो मेरे मर्द को समझ आई। चार दिन पहले ये लकीरें देखी तो रो पड़ा। कहने लगा,-‘तू बच्चों के साथ कितना भूखा रही! इतनी सारी कमाई मैं पी गया!…अब हम मिल के रोटी खाएंगे,बच्चों को भरपेट खिलाएँगे।’
अपने आँचल से आंसू पोंछती काशीबाई बोली,-‘ये भाजी वो ही लाया है दीदी।’

                                                                 #सीमा जैन

परिचय: सीमा जैन की जन्मतिथि-२ अप्रैल १९६५ और जन्म स्थान-बदनावर जिला-धार(मध्यप्रदेश) हैl आपने बीएससी के साथ ही एमए तथा टैक्सटाइल डिजाइनिंग में डिप्लोमा भी प्राप्त किया हैl स्वयं का व्यवसाय और आकाशवाणी में कॉम्पेयर है तो लेखन में भी सक्रिय हैंl आपका निवास मध्यप्रदेश के शहर-ग्वालियर में है l लेखन में विधा-लघुकथा तथा कविता है l आपकी कई लघुकथाएँ व कविता प्रतिष्ठित समाचार-पत्र,साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है l सम्मान देखें तो आपको लघुकथा के लिए किरण पुरस्कार-२०१६ (अंतर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन), ऑनलाइन प्रतियोगिता में भी कुछ पुरस्कार एवं स्वच्छ भारत अभियान पर लघु फिल्म निर्माण के लिए भारत सरकार की तरफ से प्रोत्साहन पुरस्कार मिला है। आपको अन्य में चित्रकला का शौक है,जबकि लेखन का उद्देश्य-एक बेहतर समाज की ख़्वाहिश और मन का सुकून है l

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One thought on “काशी की लकीरें

  1. ​सकारात्मकता लिए लघुकथा.. काश सब काशी के पति सा समझ जाए

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।