तो हँस के ग़ज़ल करना

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aabha dube
रह-ए-इश्क में कुछ तुम भी,अपने से पहल करना।
तोहफे़ में मिले आँसू,तो हँस के गजल करना॥
फिर से बखुशी लौटे,वो बज़्म हिरासत में।
रौनक में शमअ का भी,मंजूर दखल करना॥
वो बार उठाना मत,लम्हों का सफर लेकर।
आए न जिसे ग़म को,रंगों की फसल करना॥
बहकर के बहलते हैं,अश्कों का भरोसा क्या।
आसां नहीं यादों की,दुश्वरी सहल करना॥
वो घर है हकीकत में,दीवारों-दर-की अज़मत।
कहती हो जहां बाँहें, बस काम ये कल करना॥
जज़्बे में मसीहा तो,सहलाएँगे बन सहारा।
साहिल को भिगोता है,समन्दर भी उछल कर न॥
ये जंग जरूरी है, यहाँ ऐसे बखीलों से।
रखते हैं जो बेटी को,आलों में मसल कर न॥
वो भी तो जुदाई में, पागल-सी बिखरती हैं।
जिस आँख को आता है,हर बात पर छल करना॥
                                                     #आभा दुबे ‘अनामिका’
परिचय : आभा दुबे ‘अनामिका’ मध्यप्रदेश के मंडला में बसी हुई है। आप अखिल भारतीय साहित्य परिषद(महाकौशल प्रांत) की सदस्य हैं। साहित्य की विधा-गीत,ग़ज़ल,लेख तथा कहानी आदि में सक्रिय हैं।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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