कहाँ गए सावन के झूले ,
जो हर डाली पर पड़े हुए थे।
कहाँ गईं सखियों की टोली,
जो पीहर में घर-घर विचर रहीं थीं।
कहाँ गए बच्चों के वो ऊधम ,
जो मामा के संग मचा रहे थे ।
कहाँ गए वो गांव हमारे,
जहां सावन में रस बरस रहे थे ।
कहाँ गए वो सावन के गीत,
जो हर गलियों में गूँज रहे थे ।
कहाँ गए वो बादल सावन के,
जो रिमझिम-रिमझिम बरस रहे थे ।
कहाँ गए वो पोखर ताल,
जो सावन में लबालब भरे हुए थे ।
कहाँ गयी धरा की हरियाली,
जो हम सब को लुभा रहे थे ।
कहाँ गए मोर के नाच,
जो सावन की आगमन बता रहे थे ।
कहाँ गए वो रीति – रिवाज ,
जो प्रेम से जीना बता रहे थे ।
नाम-पारस नाथ जायसवाल
साहित्यिक उपनाम – सरल
पिता-स्व0 श्री चंदेले
माता -स्व0 श्रीमती सरस्वती
वर्तमान व स्थाई पता-
ग्राम – सोहाँस
राज्य – उत्तर प्रदेश
शिक्षा – कला स्नातक , बीटीसी ,बीएड।
कार्यक्षेत्र – शिक्षक (बेसिक शिक्षा)
विधा -गद्य, गीत, छंदमुक्त,कविता ।
अन्य उपलब्धियां – समाचारपत्र ‘दैनिक वर्तमान अंकुर ‘ में कुछ कविताएं प्रकाशित ।
लेखन उद्देश्य – स्वानुभव को कविता के माध्यम से जन जन तक पहुचाना , हिंदी साहित्य में अपना अंशदान करना एवं आत्म संतुष्टि हेतु लेखन ।