यादें बचपन की…

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sunil patel
कम्बख्त ये ज़िन्दगी भी कितने दर्द देती है,
कभी भूले तो कभी बिछड़े देती है।
 
 
बचपन में यारों की पीठ पीछे खिलौने देती थी,
अब तो पीठ पीछे यारों के हाथों में ख़ंजर देती है।
 
 
बचपन में गुड्डे-गुड़ियों की शादी में नाचते थे,
अब तो मालिक के इशारों पर नाचते हैं हम।
 
 
बचपन में चुटकियों में तिनकों के आशियाने बना लेते थे,
अब तो बस आशियाना चलाने के लिए दर-दर भटकते हैं हम।
 
 
बचपन में कस्मे-वादे निभाने को सब कुछ छोड़ आया करते थे,
अब तो लोगों को लुभाने के लिए झूठी कसमें खाते हैं हम।
 
 
कम्बख्त ये ज़िन्दगी भी कितने दर्द देती है,
बस पहचान नहीं पाते हैं हम…l 
 
 
बचपन में नंगे पैर मीलों दोस्तों के संग चले जाते थे,
अब तो कुछ दूर भी किसी के साथ चल नहीं पाते हैं हम।
 
 
न जाने कैसे बीत गया वो बचपन,कहां चले गए वो सब,
यादे तो बहुत-सी मगर,अब कहां किसी को याद आते हैं हम।
 
 
बहुत कुछ दिया तूने ऐ ज़िन्दगी,दरख़्वास्त इक करते हैं,
इसी रफ़्तार से पीछे ले चल,फिर बचपन जीना चाहते हैं हम ll 
                                                                #सुनील रमेशचंद्र पटेल
परिचय : सुनील रमेशचंद्र पटेल  इंदौर(मध्यप्रदेश ) में बंगाली कॉलोनी में रहते हैंl आपको  काव्य विधा से बहुत लगाव हैl उम्र 23 वर्ष है और वर्तमान में पत्रकारिता पढ़ रहे हैंl 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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