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वक़्त फिर किस्मत पे भारी हो गया है,
चाँद रातों का शिकारी हो गया है॥
बादशाहत ख्वाब की जागीर थी बस,
इश्क़ में ये मन भिखारी हो गया है॥
अनमनी-सी नाचती है जिंदगी भी,
झूठ उनका जो मदारी हो गया है॥
पाई-पाई बेच देंगे इस खुशी में,
के सनम मेरा तिजारी हो गया है॥
सौ हकीमों की हकीमी कम पड़ेगी,
प्यार ये ऐसी बीमारी हो गया है॥
# भरत त्रिपाठी
परिचय: भरत त्रिपाठी का सम्बन्ध मध्यप्रदेश के ग्वालियर से है। इसी प्रदेश के भिंड में १९८८ में जन्म हुआ है।इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग स्नातक तथा एम.टेक.आपने किया है। काव्य में मुख्यतः श्रृंगारिक गीत लिखने के साथ साथ आपने हिन्दी के विभिन्न छन्दों की भी रचना की है। इसमें दोहा,चौपाई ,घनाक्षरी,कुंडलियां और आल्हा प्रमुख है। आपकी कुछ ग़ज़लों को भी सराहना प्राप्त हुई है। देश के बड़े महाविद्यालयों के साथ ही असम में आयोजित काव्य आयोजनों एवं देश के अन्य प्रतिष्ठित मंचों से सफल काव्य पाठ किया है।
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