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रात के ११ बज चुके थे और सौम्या ने ऑफिस से निकलकर देखा तो घने अंधेरों ने अपनी हुकूमत बना ली थी।
सौम्या के मन में डर पैदा हो रहा था और इस डर का कारण था उसके घर तक पहुंचने में पड़ने वाली एक सुनसान सड़क…।
‘डर’ का कारण साफ था कि,आए दिन दिल्ली में दुष्कर्म जैसे काण्ड आम हो गए थे,और लड़कियां अंधेरों में अपने आपको महफूज नहीं पा नहीं पा रही थी।
सौम्या ने अपने कदमों को आगे बढ़ाया। और सहमी-सहमी-सी चुपचाप सड़क पर चल रही थी।
उसके हाथ और पांव दोनों कांप रहे थे,उसकी नजरें सीधी झुकी हुई थी। उसे कई डर सता रहे थे कि,आज वो अपने घर क्या बताएगी कि,वो इतनी देर से क्यों आई है ।
पापा कितना परेशान होंगे,और मेरा फोन भी बंद है। ये डर मन में धीरे-धीरे डर को और बढ़ा रहा था। ठंड का मौसम होने के बावजूद उसके चेहरे से पसीना गिर रहा था। उसकी मनोदशा देखने लायक थी। एक तरफ परिवार का डर और दूसरी तरफ समाज का। परिवार का डर डांट खाने का था, मगर समाज का डर उसके चरित्र से जुड़ा था। परिवार की तो डांट खा लेती,परंतु समाज का उसे दागदार करना उसके परिवार को जिंदा ही मार डालता, और परिवार कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहता। मन में लगातार उथल-पुथल हो रही थी,और आखिरकार वो पहुंच गई उस सुनसान सड़क पर,जहां उसका डर चरम सीमा पर था। वह सुनसान सड़क लगभग आधे किलोमीटर की थी,पर उसका डर बहुत ही घातक होता जा रहा था। उसके एक-एक कदम बढ़ रहे थे,परंतु हर एक कदम पर उसका डर भी बढ़ रहा था।
अचानक सौम्या के कानों में आवाज गूंजने लगी और वह आवाज थी सियारों की। आवाज सुनकर सौम्या के प्राण मानो रुक से गए थे और उसके हाथ-पैर पहले से भी ज्यादा कांपने लगे थे।
उसी डर के साथ उसने अपने कदमों को तेजी से बढ़ाना शुरू कर दिया और उसने तय कर ली उस रास्ते की आधी दूरी।सौम्या बोल तो कुछ नहीं रही थी,परंतु उसका डर अपनी हुकूमत कर रहा था।
अचानक सौम्या को लगा कि,किसी ने उसे पीछे से हाथ लगाया..उसने पीछे मुड़कर देखा तो वहां कोई नहीं था।
फिर उसने अपने कदम को आगे बढ़ाया, तभी उसे लगा कि,कई लड़के उसे बुला रहे हैं और एक बार फिर उसने पीछे मुड़कर देखा तो वहां कोई नहीं था।
सौम्या अपने मन में डर को व्यापक जगह दे रही थी,और मन का डर उसे कमजोर बना रहा था।
सहमी-सहमी डरी-डरी सौम्या अपने घर की तरफ बढ़ रही थी कि,अचानक किसी ने पीछे से आवाज़ दी-सौम्या बिटिया, इतनी रात को कहां से आ रही हो ? उसने मुड़कर देखा तो उसके पास में रहने वाले रामू काका थे। सौम्या रामू काका को देखकर रोने लगी।
रामू काका सौम्या के चेहरे की स्थिति देखकर बोले-चलो मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं। रामू काका सौम्या को उसके घर छोड़ आए।
सौम्या ने अपने घर पहुंचकर बाहर बेल बजाई। अचानक दरवाजा खुला और पापा उसके सामने खड़े थे। पापा को देख सौम्या उनके गले से लिपट गई और सिसकियां भर के रोने लगी।
बेटी का यह रोना देख पापा ने उसके बालों पर हाथ फेरते कहा-‘बिटिया क्या हुआ।’
फिर सौम्या ने बताया अपने मन का डर।
पूरी बातें सुनकर उसको पूरे परिवार ने गले लगा लिया।।।
संदेश-इस कहानी के माध्यम से आपको संदेश देना चाहता हूं कि, सौम्या के मन में जो डर था,उस डर का कारण था वर्तमान में घट रही दुष्कर्म जैसी घटनाएं। ऐसी घटना में पुरुष तो अपनी हवस मिटा लेता है,परंतु वह नारी पूरे समाज में मुंह दिखाने के लायक नहीं होती और उसका परिवार जीते-जी मर जाता है। इसका कारण होते हैं सिर्फ और सिर्फ हम…। अतः हम अपनी सोच बदलें और समाज में महिलाओं को सम्मान दें,ताकि फिर से किसी सौम्या के मन में डर पैदा नहीं हो, और वह पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो।
#विक्रांतमणि त्रिपाठी
परिचय : विक्रांतमणि त्रिपाठी एक लेखक के रुप में सामाजिक समस्याओं को उकेरते हैं,ताकि आमजन उस पर सोचेंं। उत्तरप्रदेश के जिला-सिद्धार्थनगर में ग्राम मधुकरपुर में रहते हैं। आपने एम.ए.(भूगोल)किया है और वर्तमान में एमएसडब्ल्यू की पढ़ाई जारी है। आप एक एनजीओ में कार्यरत हैं। रुचि समाजसेवा,कविता लेखन और विशेष रुप से कहानी लिखने में है।
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