पालें-पोसें वृक्ष…

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sanjeev
सभ्य-श्रेष्ठ
खुद को कहता नर
करता अत्याचार।
पालें-पोसें वृक्ष
उन्हीं को क्यों
काटे? धिक्कार।
बोए बीज,लगाईं कलमें
पानी सींच बढ़ाया।
पत्ते,कली,पुष्प,फल पाकर
मनुज अधिक ललचाया।
सोने के
अंडे पाने
मुर्गी को डाला मार।
पालें-पोसें वृक्ष
उन्हीं को नित
काटें? धिक्कार।
शाखा तोड़ी,तना काटकर
जड़ भी दी है खोद।
हरी-भरी भू-मरुस्थली कर
बोनसाई ले गोद।
स्वार्थ साधता क्रूर दनुज सम
मानव बारम्बार।
पालें-पोसें वृक्ष
उन्हीं को क्यों
काटें? धिक्कार।
ताप बढ़ा,बरसात घट रही
सूखे नदी-सरोवर।
गलती पर गलती,फिर गलती
करता मानव जोकर।
दण्ड दे रही कुदरत क्रोधित
सम्भलो करो सुधार।
पालें-पोसें वृक्ष
उन्हीं को हम
काटें? धिक्कार।
                                                                                 #संजीव वर्मा सलिल

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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