मासूम बचपन

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niraj tyagi
आशीष और सपना शादी के बाद अपनी जॉब की वजय से अपने संयुक्त परिवार में ना रहकर गुड़गांव के दो कमरे के फ्लैट में अपना जीवन यापन कर रहे हैं।उन दोनों की शादी को लगभग पंद्रह साल हो गए हैं और एक बारह वर्षीय पुत्री के माता पिता है।
        उनकी बिटिया एक बड़े ही अच्छे स्कूल में पढ़ रही है दोनों पति पत्नी अपनी अपनी नौकरी के चक्कर में बहुत ही व्यस्त रहते हैं।जब सुबह के समय बिटिया को स्कूल भेजना होता है तो उनके लिए बड़ी समस्या हो जाती है।
        क्योंकि दोनों को अपने ऑफिस के लिए तैयार होना पड़ता है और उसको बस स्टैंड तक भी छोड़ कर आने का भी वही समय होता है। लेकिन जीवन में कितनी भी व्यस्थता हो बच्ची को तो स्कूल छोड़ने के लिए बस तक छोड़ कर आना ही होगा।
         जैसे तैसे दोनों रोज उसे स्कूल के लिए बस में बैठा कर भेजते हैं।बच्ची के स्कूल की बस उनके घर से थोड़ा सा दूर आकर बच्चों को लेकर जाती है।यह भी उनकी एक समस्या का कारण है।
       कुछ समय बाद दोनों ने मिलकर इसके लिए एक उपाय निकाला कि बिल्डिंग में एक वैन वाला भी आता है जो बच्चों को वैन में घर से सीधे स्कूल छोड़ता है फिर घर लेकर आता है।
        दोनों पति पत्नी को उसके वापस आने की कोई समस्या नहीं थी क्योंकि की गुड़िया की माँ एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका है।गुड़िया जब वापस आती है इतने में उसकी मां स्कूल से आ चुकी होती है।बस उसके जाने के समय से दोनों परेशान है।
         उन्होंने बिटिया को वैन से भेजना शुरू कर दिया अब धीरे-धीरे गुड़िया वैन से जाने लगी।वैन चलाने वाला ड्राइवर वैन में दो बच्चे ज्यादा ही भरकर लेकर जाता है।गुड़िया को और एक लड़की के साथ आठ लड़कों के साथ बैठकर स्कूल जाना होता है।
        शुरू शुरू में गुड़िया को ठीक लगता था पर कुछ समय बाद उसे अजीब सा महसूस होने लगा।इतने लड़को के बीच में बैठकर वो असमंजस सा महसूस करने लगी और कभी कभी जब उसे वैन के ड्राइवर के साथ आगे बैठना पड़ता था तब उसे उसका व्यवहार भी अच्छा नही लगता था।
         ड्राइवर भी जिस तरीके से गुड़िया से बात करते करते उसे छूता रहता है।उस मासूम सी बच्ची का मन उससे काफी परेशान रहता है।लेकिन इतनी छोटी होने के बावजूद भी वह अपने मम्मी पापा से कुछ नहीं कह पाती है।गुड़िया के मां बाप को अब लगने लगा कि सब कुछ अब व्यवस्थित हो गया है और अब उनके लिए बड़ा आसान हो गया उनकी लड़की आराम से स्कूल तक जा सकती है।
         लगभग तीन चार महीने बाद गुड़िया कुछ सहमी सहमी सी नजर आने लगी और काफी चुप चुप रहती थी।वह अपनी परेशानी अपने माता पिता को नहीं बता पा रही थी। उसको काफी चुप चुप देख कर एक दिन उसकी मां ने उससे पूछा गुड़िया बेटा क्या हुआ है आजकल चुप रहती हो।स्कूल में पढ़ाई ठीक चल रही है ना,अचानक संध्या की आंखों में आंसू आ गए।
        उसने अपनी मां को सबकुछ बताया कि वैन का ड्राइवर किस प्रकार बिना मतलब उसे छूता रहता है।गुड़िया की माँ ये सब सुनकर परेशान हो गई।उसने अपनी बिटिया से कहा कि किसी से कुछ बताने की जरूरत नहीं है।हम तुम्हे वैन से हटाकर फिर से स्कूल बस से भेजना शुरू कर देते है।
         शाम को गुड़िया की माँ ने गुड़िया के पिता से सारी बात बताई।गुड़िया के पिता को ड्राइवर पर बहुत गुस्सा आया लेकिन गुड़िया की माँ ने उसे समझाया कि अगर वो ड्राइवर को कुछ कहेंगे तो अपनी ही बिटिया की बदनामी होंगी अब उसे फिर से स्कूल बस से ही भेजना शुरू कर दो।
         एक दो दिनों बाद गुड़िया फिर से स्कूल बस से स्कूल जाने लगी।समाज मे बदनामी के डर से उसके माता पिता ने कुछ नही किया और चुपचाप अपनी बिटिया को बस से स्कूल भेजने लगे।लेकिन इन तीन चार महीनो में स्कूल वैन से जाने के बाद अचानक गुड़िया के व्यवहार में परिवर्तन हो गया।अब वो मासूमियत से खिलखिलाकर हँसने वाली गुड़िया अचानक से बड़ी हो गयी थी।
नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश )

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