कोसने का मानसिक दिवालियापन

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anupam tivari
एक हवा-सी चली है एक विशेष वर्ग को भड़काकर उनके हिमायती नेता बनने के चक्कर में ब्राम्हणों को विदेशी आक्रांता बताते हुए बुरा बोलने की। ब्राम्हणों को विदेशी बताने वाले स्वघोषित मूल निवासियों की मानसिक दशा देखकर यही प्रतीत होता है कि वे अपने मूल को भूल चुके हैं। स्पष्ट शब्दों में उन्हें यह पता ही नहीं है कि उनके  पूर्वजों की राष्ट्रीयता क्या थी,और वे किस धर्म के अनुयायी  थे ?
 वे कहते हैं कि ब्राह्मणों ने अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए वर्ण व्यवस्था लागगू कराई। यह भी बताते हैं कि,दलितों को उनके अधिकारों से वंचित रखते हुए उनका शोषण किया गया। और तो और ये लोग दलितों को गैर हिन्दू भी बताते हैं तो ईश्वर की उपासना को ढोंग बताते हैं। कहते हैं कि,ब्राह्मण भगवान के नाम पर ठगी करते हैं। इनकी बातों और कर्मों में कितना विरोधाभास है,इसका अंदाजा आप इतने से ही लगा सकते हैं कि वे एक तरफ तो ईश्वर की उपासना को ढोंग बताते हैं और वहीं दूसरी ओर ईश्वर के उपासक रामायण महाकाव्य के रचयिता महर्षि वाल्मिकी जी की पूजा को उचित ठहराते हैं।
इनके कहे अनुसार जिन दिनों वर्णव्यवस्था चलन में थी,उस समय दलितों को कोई अधिकार नहीं दिया जाता था,लेकिन इस सवाल का जवाब कोई नहीं देता है कि जब दलितों को कोई अधिकार नहीं दिया जाता था तो उन दिनों रत्नाकर डाकू को एक ऋषि के रूप में ब्राम्हणों ने कैसे स्वीकार कर लिया।
यह सब मतदाताओं को साधने की राजनीति है। उन्हें डर लगता है कि,पिछले ६० वर्षों में जैसा अन्याय सवर्णों के साथ हुआ है,इससे डर है कि, कहीं सामान्य वर्ग एकजुट न हो जाए और इसीलिए वे लोग सामान्य वर्ग को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। मैंने एक बार सोशल मीडिया में एक वीडियो में एक ओजस्वी वक्ता को अंग्रेजों को दलितों का हिमायती और ब्राह्मणों का विरोधी बताते हुए भी सुना था।महानुभाव बोल रहे थे कि-अंग्रेजों के सामने इन ब्राह्मणों की एक नहीं चलती थी। इसी कारण ब्राह्मणों ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। अंग्रेजों का शासन बहुत अच्छा था,वे दलितों को प्रताड़ित नहीं करते थे,जबकि अन्य सभी पूर्ववर्ती शासक ब्राह्मणों के इशारे पर पिछड़ों और दलितों का शोषण करते थे। अब इन विद्वानों को कौन बताए कि,अंग्रेजों द्वारा भारत पर कब्जा जमाने के पहले पूरे विश्व में भारत एकमात्र ऐसा राष्ट्र था,जहां साक्षरता की प्रतिशतता १०० थी। प्राचीन भारत के गुरुकुल में राजा और रंक दोनों के वंशज एक ही कक्षा में पढ़ते थे और उनकी वेशभूषा, पुस्तकें,बिस्तर,आवास आदि समान ही होते थे |
इन सबको अपनी जांच कराकर अपने मूल का पता करना चाहिए।
                                                                                               #अनुपम तिवारी ‘मन्टू’ 
परिचय:सामाजिक कार्यकर्ता वाली पहचान  अनुपम तिवारी ‘मन्टू’ ने बनाई हैl इनकी शिक्षा बी.कॉम. हैl उत्तरप्रदेश के देवरिया जिला के भठवां तिवारी गांव के निवासी हैंl यह शौकिया लेखन करते हुए जब भी समय मिलता है तो कुछ प्रेरक और निष्पक्ष लिखने की कोशिश करते हैं ताकि,युवा साथियों को सही-गलत का निर्णय करने में सहयोग मिल सकेl 

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।