विकलांग किसी दल के एजेंडे में नहीं

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hema
दया नहीं हमें चाहिए,
नहीं चर्चा दलों में चाहिए।
देश को दिव्यांग बनाने वालों से
वैशाखी हमें नहीं चाहिए ll
छप्पन का सीना हम भी रखते हैं,
हाथ के बल भी चल सकते हैं।
किसी सहारे की जरुरत हमें नहीं है
निजबल से ही यात्रा कर सकते हैं॥
विकलांग वित्त पर ताने खामोशी,
आज तक हर दल है।
शर्मा जी लाचार स्वयं पग से,
फिर भी करते बहुत प्रयास हैं॥
वादा करके भी राजग हमारे,
अधिकार विधेयक पास नहीं करती है।
दूसरी पार्टियां भी इसके लिए
अपना मुंह तक नहीं खोलती हैं॥
यहां सात करोड़ दिव्यांगों के,
भले-बुरे की किसको पड़ी है।
जिनके हितों की खातिर तो,
संसद भी अब तक मौन खड़ी है॥
करके इकट्ठा कुछ लाचार,
देते बांट बैसाखियां दो-चार है।
धोखा दिए बड़े कांग्रेसी
अब तो मोदी से जुड़ी आस है ll
मिलना नहीं अधिकार जब हमें,
तब विकलांग अपना प्रत्याशी लाएंगे।
हुई उपेक्षा अब तक दिव्यांगों की,
आप-हम अधिकार स्वयं से स्वयं के ले पाएंगे ll
कोई दिव्यांग मूक-बधिर या हो श्रवण से लाचार,
हाथ के बल चलता हो या हो आंखों में अंधकार।
रोशनी अपने लिए खुद तलाश करेंगे एकसाथ,
दिव्यांग नहीं अब किसी सहारे के मोहताजll
ब्लाइंड स्टिक और वैशाखी,कान मशीन हो या कैलीपर्स,
सक्षम हो निर्माण हम करते फिर हम को किसी की नहीं है जरूरत।
सृजन करेंगे रोजगार का नौकरियों में कोटा की नहीं अब फिकर,
देश हित की खातिर किन्हीं स्पर्धाओं में भी हम हैं नहीं कमतर॥
जीते हमने स्वर्ण पदक बने हैं शिखर विजेता,
ओलंपिक हो या मैराथन हर कहीं बिखेरा हमने जलवा।
एवरेस्ट नहीं,अब ऊंचा अंतरिक्ष भी
हमने भेदा,
बिन पैरों के भी हर काम करें हम,
अब संसद पर भी हक है अपना॥
लिख देंगे हम अपनी कहानी बिन जुबान बिन हाथों के,
दिल्ली तक हम आ पहुंचे,चले बिना पैरों से।
अब अधिकार मिलेंगे हमको हमारे पूरे,
क्योंकि दिव्यांग नहीं किसी दल के एजेंडे मेंll
                                                                               #हेमा श्रीवास्तव
परिचय :हेमा श्रीवास्तव ‘हेमा’ नाम से लिखने के अलावा प्रिय कार्य के रुप में अनाथ, गरीब व असहाय वर्ग की हरसंभव सेवा करती हैं। २७ वर्षीय हेमा का जन्म स्थान ग्राम खोचा( जिला इलाहाबाद) प्रयाग है। आप हिन्दी भाषा को कलम रुपी माध्यम बनाकर गद्य और पद्य विधा में लिखती हैं। गीत, ‘संस्मरण ‘निबंध’,लेख,कविता मुक्तक दोहा, रुबाई ‘ग़ज़ल’ और गीतिका रचती हैं। आपकी रचनाएं इलाहाबाद के स्थानीय अखबारों और ई-काव्य पत्रिकाओं में भी छपती हैं। एक सामूहिक काव्य-संग्रह में भी रचना प्रकाशन हुआ है।

ई-पत्रिका की सह संपादिका होकर पुरस्कार व सम्मान भी प्राप्त किए हैं। इसमें सारस्वत सम्मान खास है। लेखन  के साथ ही गायन व चित्रकला में भी रुचि है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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