फुटपाथों पर नंगे बदन, कचरे बीनते नन्हें कदम दो पल की खुशी के जतन में, जब बिकती कोई बेटी नादान तब लगता है मरुं मैं,अथवा मारुं पीड़ा, दुःख गरीबी-भूख का कीड़ा। ये समाज की बंदिशें,ये लाचार से लोग, कब मिटेगी क्लान्ति इन धूमिल से चेहरों की, सामान्य,पिछड़ा,अति पिछड़ा, अल्पसंख्यक आदि […]