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अपना समझ कर किया था एतबार,
आज वो ही खून के आंसू रुला गया।
क्या गिला शिकवा करें औरों से हम,
कोई अपना ही आशियां जला गया ।
उम्मीद नहीं थी कुछ सपने में भी,
कोई अपना ही दुनिया हिला गया ।
जीवन की इन बासंती फिज़ाओं में,
कोई अपना ही जहर मिला गया ।
ज़रा संभल के करना एतबार यारो,
लोग क्या-क्या मंजर दिखा जाते हैं ।
“स्पर्श” करते हैं जो दिल को ज्यादा,
वो ही पीठ पर खंजर लगा जाते हैं ।
#सुशील दुगड़ “स्पर्श”अंकलेश्वर(लुहारिया)
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