आवाज़ देकर मुझे
मत बुलाओ।
में किसी और कि
अब हो चुकी हूँ।
पहले में तुम पर
बहुत मरती थी।
पर तुम किसी और
पर तब मरते थे।।
मेरी सांसो में तब
तुम बसते थे।
पर तुम्हारी सांसो में
कोई और बसता था।
पर अब में किसी और
कि सांसो धड़कन हूँ।
तुम्हे मिली है तुम्हरी,
बेवफाई की सजा ये।
तभी तो छोड़ दिया है,
तुम्हें तुम्हारी मेहबूबा ने।।
आवाज़ देकर मुझे
मत बुलाओ…..।।
जब में एक जिंदा,
लास बन गई हूँ।
तब तुम भी एक,
लास बनके आये हो।
अब दोनों की जिंदगी,
में मोहब्बत कहाँ है।
हमने ने तो नारी धर्म,
का निर्वाह कर दिया है।
माता पिता की खातिर,
सब अर्पण कर दिया है।
मोहब्बत न मिलने से
ये सब हुआ है।।
आवाज़ देकर मुझे
मत बुलाओ…….।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।