हमें न ज़ोर हवाओं से आज़माना था,
वो कच्चा धागा था उसको तो टूट जाना था।
वो मेरे ज़हन में ढलता गया ग़ज़ल की तरह,
मिरा मिज़ाज ही कुछ ऐसा शायराना था।
हरेक शख़्स की आँखों में हम ही रहते थे,
हमारे पास जो उनका भी आना-जाना था।
ये और बात अंधेरों ने डस लिया हमको,
कभी तो हमसे ही रोशन हुआ फ़साना था।
हवा के साथ तो बढ़ती थी उसकी लौ लेकिन,
वो इक चराग़ था उसको तो बुझ ही जाना था।
उसी में प्यार की दुनिया हमें नसीब हुई,
जो सर पे माँ की दुआओं का शामियाना था।
वो शोखियां वो तबस्सुम वो क़हक़हे ‘साग़र’
कुछ ऐसा लगता है गुज़रा हुआ ज़माना था।
#विनय साग़र जायसवाल