Read Time1 Minute, 45 Second
क्या मिला किसको यहाँ प्रतिशोध से,
कुछ न हासिल हो सकेगा क्रोध सेl
मत जला संसार को इस आग से,
तू बड़ा होगा दया से त्याग सेl
अब पलायन कर जरा इस जंग से,
मत धरा को लाल कर इस रंग सेl
जोड़कर,कर बस यही अनुरोध है,
क्यों नहीं परिणाम का ही बोध हैl
डर रहा है मन मेरा अभिसार से,
जीत ले तू इस जहाँ को प्यार सेl
सब मिटाकर बैर बस अनुराग दे,
तू अभी इस दुश्मनी को त्याग देl
दूर कर ले तू सफर की ये थकन,
कर जरा चिन्तन,जरा कर ले मननl
#सुनीता काम्बोज
परिचय : १९७७ में जन्मीं सुनीता काम्बोज जिला-करनाल(हरियाणा)से हैंl। आप ग़ज़ल,छंद,गीत,हाइकु,बाल गीत,भजन एवं हरयाणवी भाषा में भी लिखती हैं। शिक्षा हिन्दी और इतिहास में परास्नातक हैं।`अनुभूति`काव्य संग्रह प्रकशित हो चुका है toब्लॉग पर भी सक्रिय हैं। कई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर कविताओं और ग़ज़लों का प्रकाशन होता है। आपकी कविताओं की प्रस्तुति डीडी दूरदर्शन पंजाबी एवं अन्य हिन्दी कवि दरबार में भी हुई है। आपका संपर्क स्थल पंजाब और स्थाई पता गाँव रत्नगढ़(पोस्ट–दामला)जिला यमुनानगर(हरियाणा)है।
Post Views:
396
Mon Jul 3 , 2017
घर के बाहर खड़ी कार आपका सम्मान बढ़ाती है। पुरानी होया नई,यह सम्मान का प्रतीक है। सरकारी कार हो तोसम्मान और बढ़ जाता है। सरकार में रहना और कार में बैठनासुकून की बात है। लोग बाहर से झांक कर देखते हैं,कौन कारमें है,कौन सरकार में है। कार और सरकार में बैठने के लिएजरूरी है आपके कपड़े अच्छे हों,उसमें बैठने का तमीज हो,येनहीं कि,अंदर बैठकर बाहर की तरफ थूक दिया। सरकारी खड़ी कार भी चलती है और सरकार भी चलती है। खड़ी कार और खड़ी सरकार दोनों ही निकम्मेपन का प्रतीकहै। सरकार रविवार को नहीं चलती,लेकिन खड़ी सरकारी काररविवार को भी चलती है। रविवार को चलने वाली सरकारीकार में जरूरी नहीं कि,सरकारी साहब ही हों। अक्सर,आप जब रविवार को बाहर निकलते हैं तो देखते हैंसरकार की कार सड़क पर है,पर उसमें बैठे होते हैं–दादा,दादी,बच्चे और उनकी सुन्दर (जैसी भी हो) मां। सरकारी कार केशीशे सफेद होते हैं,उसमें पर्दे लगे होते हैं,लेकिन वे हटा दिएजाते हैं। सरकार की यही पारदर्शिता अच्छी लगती है। वैसेसरकारी कार शाम को छह के बाद माल की पार्किंग,सब्जीमण्डी के किनारे, किसी बड़े शो–रूम के सामने इठलाई–सी खड़ीहोती है। उसमें कभी `मेम साहब` तो कभी उनके बच्चे फटीजीन्स पहने निकलते दिखाई देते हैं। हाथों में मोबाइल,हाथ मेंसोने का ब्रेसलेट,गले में सोने की चेन,लेकिन गाड़ी सरकारकी,पेट्रोल सरकार का,आदमी सरकार का…। जब पतिसरकारी है,तो गाड़ी भी सरकार की ही होनी चाहिए। रविवार को सरकार बंद और सरकारी गाड़ी काम पर…। साहबछुटटी पर,चालक नौकरी पर..। जब चालक अपने परिवार कोसरकारी गाड़ी में घुमाता है तो समाजवाद नजर आता है।अच्छा लगता है,सब मिलकर सरकारी सम्पत्ति को अपनीसम्पत्ति मानकर उपयोग कर रहे हैं। आओ सरकार कीसम्पत्ति को अपनी मानें,उसे जलाएं,तोड़ें या बरबादकरें,क्योंकि यह `सम्पत्ति आपकी अपनी`है। सरकारी गाड़ी चालक चलाता है,साहब नहीं। चालक क्याआदमी नहीं होता,उसके बाल–बच्चे नहीं होते,उसका समाजनहीं होता,उसके बच्चों का मन नहीं होता,उसकी पत्नी कीइच्छाएं नहीं होती। जब साहब की बीबी को वह कार्यालयीन समय के बाद घुमा सकता है,उनके काम कार्यालयीन समयके बाद कर सकता है,तो उसे भी अधिकार है कि वह अपनीबूढ़ी मां को `इंडिया गेट` सरकारी गाड़ी में घुमा सके। साहब केदादाजी की मैयत में साहब के पूरे परिवार को शहर से कोसोंदूर ले जा सकता है,तो क्या साहब को पत्थर दिल समझ लियाहै। साहब पत्थर दिल नहीं होते। वे भी जानते हैं,सरकार काऔर सरकारी गाड़ी का उपयोग कैसे करना चाहिए। साहबजानते हैं,कार और सरकार भ्रष्टाचार का प्रतीक है और इसमेंसबका बराबर का हिस्सा है। उसमें साहब से लेकर चपरासीतक का अनुपात है। सरकार चलाने के लिए बहुमत के साथ–साथ अनुपात भी होना चाहिए। कार साहब के घर के सामने या चालक के घर के सामने,दोनोंका सम्मान उसी अनुपात में होता है,जितना सरकार चलाने केलिए हिस्सा होता है। सब चाहते हैं,घर के सामने खड़ी कार। कार सरकारी हो,अपनीहो या घर पर आए रिश्तेदार की..कार के आते ही दरवाजे खुलजाते हैं,उत्सुकता बढ़ जाती है- `घर आया मेरा परदेसी,प्यास बुझे मेरी अंखियों की…।` #सुनील जैन राही परिचय : सुनील […]