आ गए हैं मेघ काले,
छा गए हैं मेघ काले
गड़गड़ाते,थरथराते,
भा गए हैं मेघ काले।l
नाचने तरुवर लगे हैं,
इस हवा को पर लगे हैं
देख कर नादान पंछी,
लौटने अब घर लगे हैं।
रोशनी अब खो गई है,
रात काली हो गई है
छुप गया है चाँद भी ये,
चाँदनी अब सो गई है।
जीव हैं भयभीत सारे,
कुछ लबों पर गीत प्यारे
ये धरा इन बादलों के,
सब समझती है इशारे।
लग रहा है आज अम्बर,
ज्यों उमड़ता-सा समन्दर
उठ चली चंचल हिलोरें,
आ रहे जैसे बवंडर।
#सुनीता काम्बोज
परिचय : १९७७ में जन्मीं सुनीता काम्बोज जिला-करनाल(हरियाणा)से हैंl। आप ग़ज़ल,छंद,गीत,हाइकु,बाल गीत,भजन एवं हरयाणवी भाषा में भी लिखती हैं। शिक्षा हिन्दी और इतिहास में परास्नातक हैं।`अनुभूति`काव्य संग्रह प्रकशित हो चुका है toब्लॉग पर भी सक्रिय हैं। कई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर कविताओं और ग़ज़लों का प्रकाशन होता है। आपकी कविताओं की प्रस्तुति डीडी दूरदर्शन पंजाबी एवं अन्य हिन्दी कवि दरबार में भी हुई है। आपका संपर्क स्थल पंजाब और स्थाई पता गाँव रत्नगढ़(पोस्ट–दामला)जिला यमुनानगर(हरियाणा)है।