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जीवन में केवल ठंड होती,
तो धूप सुहावनी कैसे लगती।
यदि केवल गरमी होती तो
छाँव की तलाश क्यों होती॥
सुख और दुख आते हैं,
जाते हैं।
यदि मित्र न होते तो
शत्रु की पहचान कैसे होती॥
हम पूर्ण होते तो,
परमेश्वर
को क्यों ढूंढते।
#डॉ.राजलक्ष्मी शिवहरे
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