आदत
छोटी-सी उम्र से ही,
मैंने देखा है
पिता को रखते हुए
घर का एक-एक हिसाब
और तुम कहते हो,
वे मुट्ठी में पादते हैं
दादा को एक ही चिढ़ रही
पिता की उस छोटी-सी नौकरी से सदा
नौकरीपेशा होते हुए भी दादू
ले लेना चाहते थे,
पिता की सारी तनख्वाह
बेटे के अपने परिवार की जरुरतों
और बच्चों की भावनाओं को
फेंकते हुए चले में
जोर सेl
हम तीन भाई-बहन रोते रहे
और
चाचा के तीनों बच्चों को
दादा-दादी खिलाते रहे
खूब सारा घी-मक्खन
और मांगने से पहले ही देते रहे
पैसे और
खूब सारा प्यारl
कच्चे घर की उस छोटी-सी खिड़की से
देखते रहे सब हम तीनों
दादा-दादी की कुटिलताएं
और अपनी जीभ को मलते रहे होंठों पर
लेते रहे घी और मक्खन का स्वाद
बस इसी तरह ही..
पिता खाते रहे लाठियॉं
मॉं-बाप और भाई से
चुपचाप
संस्कारित बनकर
देते रहे हमेशा अपने हिस्से से ज्यादा
उन्हेंl
हम तीन
साथ में मॉं भी,
देखते रहे एक-दूजे की आँखों में
पसरा हुआ
आने वाला डर
मॉं मायके से ढोती रही
जरुरत का हर सामान
करती रही डर को कम करने का प्रयास
और जोड़ती रही
हमारे सपनों की एक-एक फ्रेमl
हमारी जिंदगी बस
गुजरती रही
उस पुश्तैनी कच्चे घर के एक कमरे में
यूँ ही खामोशी से,
बहुत वर्षों तक
मॉं और पिता खाते रहे
अशांत होकर
शांत मन से
नमक के साथ ही रोटी
चुपचाप
गर्भावस्था के दौरान भीl
#पवन चौहान
परिचय : पवन चौहान का गांव महादेव और तहसील सुंदर नगर(जिला-मण्डी,हिमाचल प्रदेश) हैl आपका जन्म १९७८ का हैl