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प्यारे पापा,न्यारे पापा,
तुम शिक्षक अनमोल हमारे।
नन्हें-नन्हें कदमों को तुम चलना सिखलाते हो,
सूनी-सूनी आँखों में तुम नए ख्वाब जगाते हो,
प्यारे पापा,न्यारे पापा,
तुम शिक्षक अनमोल हमारे॥
गिरकर उठना,उठकर चलना..
तुम सिखलाते हो,
खेल-खेल में पापा मेरे ,
कैसे पाठ पढ़ाते हो?
प्यारे पापा,न्यारे पापा,
तुम शिक्षक अनमोल हमारे॥
संरक्षित कर हमेशा सदा,
खुद तकलीफ़ उठाते हो,
दुःख-सुख में कैसे जीना है?
यह तुम सिखलाते हो,
प्यारे पापा,न्यारे पापा,
तुम शिक्षक अनमोल हमारे॥
स्वाभिमान से जीना तुमने सिखाया,
‘गीता’ को तुम बहुत याद आते हो।
प्यारे पापा,न्यारे पापा,
तुम शिक्षक अनमोल हमारे॥
परिचय : श्रीमती गीता बैसला ने एमएससी और बीएड की शिक्षा हासिल की है और सम्प्रति से अध्यापक हैं। वर्तमान में आप मध्यप्रदेश के कालापीपल मंडी (जिला शाजापुर) की निवासी हैं,जबकि स्थाई रुप से नई दिल्ली(पालम) की हैं। रुचि लेखन कार्य, कविता,पुस्तकें पढ़ने में है। आपको हिन्दी सेवा समिति द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लिखी रचनाओं को निरंतर स्थान मिलता रहता है।
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Wed Jun 21 , 2017
बरसो बदरा अब तो बरसो मेरे मन के आँगन में, उमड़-घुमड़ कर आ जाना इस बार हमारे सावन में। गर्म हवाएं छू-छूकर,अब तो उपहास उड़ाती हैं, मार थपेड़े धूल कणों से,मन का दर्द बढ़ाती है.. रिमझिम-रिमझिम गीत सुनाओ,बियाबान इस उपवन में, इन्द्रधनुष के रंग सजाना,आप हमारे सावन मेंll।। […]