तुम हो उषा की किरण तिमिर में,
तुमसे पथ आलोकित मैं कर लूँ।
मिले यदि असत्य की छाँव भी मुझे,
जीवन में मिली सत्य की धूप सह लूँ।
तज कर स्वार्थी भ्रमित ये जीवन,
नि:स्वार्थ, परोपकारी बन सकूं।
परनिंदा में न बीते ये पल छिन,
सरल-सहज सुविचार बनाऊँ।
विचलित न करें, जीवन रण की दुविधाएँ,
हर पल नश्वर जीवन को याद रखूँ।
मन-मस्तिष्क परिपक्व बन आत्मबल बढ़े,
लोभ-मोह, अंहकार से मुक्त सदा रहूँ।
है अब जीवन संध्या, प्रपंचों को छोड़ कर,
संतोषी बन, तृप्ति का मार्ग अपनाऊँ।
बोधि वृक्ष की पावन छाँव मिले न मिले,
घर की बगिया में ज्ञान का वृक्ष खिलाऊँ।
#डॉ. सुनीता फड़नीस
इंदौर