कविता – बुद्ध की शिक्षा

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मनुज- मनुज तुम बात सुनो!
बुद्धि संग तुम बुद्ध बनो।
शांत भाव को साथ में रखकर,
संयमित तुम आचार करो।

यह मन तो है एक पवन–सा,
चंचल प्रकृति अस्थिरता।
कभी अश्व सम दौड़े भागे,
कभी ओस की बूंद–सा ठहरे।

पर बुद्ध को जो भी समझा,
मन की लगाम को वह पकड़ता।
अपने पग स्थिरता देकर,
स्वयं लक्ष्य निर्धारित करता।

आसक्ति से दूर ही रह कर,
वैराग्य भाव से कार्य वो करता।
बुद्ध की सीख धरोहर पाकर,
स्व पतवार संग आगे बढ़ता।

इंद्रियों को वश में वह करता,
जीवन अर्थ का बोध वो पाता।
जीवन माटी जो चाक पर,
उसके लिए कुम्हार है बनता।

सीता गुप्ता
दुर्ग, छत्तीसगढ़

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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