0
0
Read Time47 Second
कहिए कलियुग!
कैसा आया
नए दौर का दौरl
खड़ी फसल को
चली आँधियों
ने झकझोरा खूब,
छिप कोने में
दुबकी-दुबकी
रोई हल्दी-दूब
बचा-खुचा जो
मालगुजारी
खाई भर-भर कौरl
हानि-लाभ के
दिशाशूल में,
लाला मालामाल
सट्टों ने भी
साठ-गाँठ कर
खूब गलाई दाल..
माल दिखाया
हाथ और कुछ
बेच दिया कुछ औरl
खुली शिकायत,
खाई धक्का
हुआ नहीं कुछ लाभ
कोठी-कोठी
जाकर बैठा
पेटी-पेटी डाक
सुनवाई के
दिन ही गायब
कुरसी से है गौरl
#शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
Post Views:
450