कहिए कलियुग! कैसा आया नए दौर का दौरl खड़ी फसल को चली आँधियों ने झकझोरा खूब, छिप कोने में दुबकी-दुबकी रोई हल्दी-दूब बचा-खुचा जो मालगुजारी खाई भर-भर कौरl हानि-लाभ के दिशाशूल में, लाला मालामाल सट्टों ने भी साठ-गाँठ कर खूब गलाई दाल.. माल दिखाया हाथ और कुछ बेच दिया कुछ […]