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याद बहुत बचपन के वो दिन आते हैं,
आज नहीं क्यों हम वैसे दिन पाते हैं।
रजवाहे में डुबकी लगाना भूल गए,
जल्दी में ही अब हर रोज़ नहाते हैं।
बैठ जमीं पर तख़्ती लिखते थे पहले,
चैन नहीं अब कुर्सी पर भी पाते हैं।
गुल्ली-डंडा,दौड़ लगाना सब भूले,
याद बहुत बचपन के साथी आते हैं।
खोए साथी सारे और खोया बचपन,
भीड़ में भी अब हम तन्हा हो जाते हैं।
माँ की ममता,बाबू जी की डाँट मिली,
डाँट नहीं अब,फ़िर भी हम घबराते हैं।
ख़्वाब बड़े होने का देखा था ‘सोनू’,
अब बच्चा बनने के ख़्वाब सताते हैं।
#सोनू कुमार जैन
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