कक्षा में रक्त के विभिन्न समूहों की चर्चा चल रह रही थी। गीता मैडम श्याम पट्ट पर रक्त की बूँदों के चित्र बनाकर ‘रक्त समूह’ के नाम लिख रही थीं। तभी सविता ने कुछ कहने के लिए हाथ उठाया और खड़ी हो गई।
`मैडम, मेरे पडौ़स में रहने वाले रोहन को कई बार अस्पताल जाना पड़ता है,खून चढ़वाने।`
हालांकि विषयांतर हुआ था,फिर भी मैडम ने सविता की जिज्ञासा शांत करने के लिए कहा-`हाँ इस बीमारी को `थैलेसीमिया’ कहते हैं। विश्व में बहुत से देशों में लोगों को यह बीमारी होती है। जरूरत के अनुसार समय-समय पर उन्हें रक्त चढ़ाया जाता है।`
तभी सीमा ने कुछ कहा,जो बहुत ही आश्चर्यजनक था।
`मैडम, मेरे दादा जी वैद्य हैं। उन्होंने मुझे बताया कि इसके बारे में आज से पाँच हज़ार वर्ष पहले महर्षि चरक ने ‘चरक संहिता’ में भी उल्लेख किया था,जो इस बीमारी का इलाज है।
मैडम को इस बात की जानकारी नहीं थी। उन्होंने तुरंत मोबाइल पर गूगल पर जानकारी देखी। बात सही थी।
गीता मैडम ने बताया-`बकरे के ख़ून में रक्त कणों की मात्रा अधिक होती है। संरचना जटिल होने के कारण रक्त कण आसानी से टूटते नहीं। बकरे के रक्त को ‘अजारक्त बस्ती’ कहा जाता है। इसे एनिमा के जरिए रोगी की बड़ी आंत तक पहुँचाया जाता है। जहाँ रक्तकणों को अवशोषित कर लिया जाता हैl भारत पहला देश है,जिसने इस इलाज में पहल की है। भारत में बहुत से बच्चों पर यह प्रयोग सफल रहा है।`
सभी लड़कियों ने आश्चर्यमिश्रित नज़रों से इस जानकारी का जरिया बनने के लिए सीमा को बधाई दी,पर मंजुला से न रहा गयाl उसने खड़े हो कर कहा-`मैडम हमारे देश की पुरानी खोजों तथा सूत्रों पर विदेशी कंपनियाँ अपना एकाधिकार जमाकर अपने नाम से पेटेंट करवा लेती हैंl क्या इस प्रक्रिया में भी ऐसा होने की संभावना है?
`होना तो नहीं चाहिएl ‘साँच को आँच क्या?’ ‘प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या?’ इस प्रयोग के परिणाम तो दुनिया देख ही रही है.` गीता मैडम ने कहाl
और फ़िर छुट्टी की घंटी बज गईl सभी लड़कियाँ मेडिकल साइंस की इस उपलब्धि से अपने देश के लिए गौरवान्वित महसूस कर रहीं थींl उनमें चिकित्सक बनकर सेवा करने की भावना जाग्रत हो चुकी थीl
#शील निगम
परिचय : शील निगम का जन्म आगरा (उ.प्र.)में १९५२ में हुआ हैl शिक्षा बीए और बीएड हैl आप कवयित्री ही नहीं,वरन पटकथा लेखिका भी हैंl मुंबई में १५ वर्ष प्रधानाचार्या तथा १० वर्ष तक हिन्दी अध्यापन कराया है l विद्यार्थी जीवन में अनेक नाटकों,लोकनृत्यों तथा साहित्यिक प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत हुई हैंl दूरदर्शन पर काव्य-गोष्ठियों में भाग लेकर संचालन भी किया है,तथा साक्षात्कारों का प्रसारण भी हुआ हैl आकाशवाणी के मुंबई केन्द्र से रेडियो तथा ज़ी टीवी पर कहानियों का प्रसारण (परंपरा का अंत,तोहफा प्यार का और चुटकी भर सिन्दूर आदि) हुआ हैl देश-विदेश में हिन्दी के पत्र-पत्रिकाओं,पुस्तकों तथा ई-पत्रिकाओं में भी विभिन्न विषयों पर आलेख,कविताएं तथा कहानियाँ प्रकाशित हैंl विशेष रूप से इंग्लैण्ड,ऑस्ट्रेलिया तथा नीदरलैन्ड की पत्रिका में बहुत-सी कविताओं का प्रकाशन हुआ हैl आपकी कई कई कविताएँ पुरस्कृत हुई हैंl शील जी ने बच्चों के लिए नृत्य- नाटिकाओं का लेखन,निर्देशन तथा मंचन भी किया हैl हिन्दी से अंग्रेज़ी तथा अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद कार्य भी आपने किया हैl हिन्दी से अंग्रेज़ी में एक फिल्म का भी अनुवाद कर चुकी हैं तो उपन्यास तथा मराठी फिल्म ‘स्पंदन’ का भी अनुवाद किया हैl हिन्दी से संबंधित बहुत से कार्यक्रमों में सहभागिता की हैl विशेष रूप से लंदन,मैनचेस्टर और बर्मिंघम में आयोजित काव्यगोष्ठियों में काव्य पाठ किया हैl
आपको लेखनी के लिए बाबा साहब आम्बेडकर नेशनल अवार्ड(दिल्ली),हिन्दी गौरव सम्मान(लंदन),प्रतिभा सम्मान(बीकानेर)और सिद्धार्थ तथागत कला साहित्य सम्मान(सिद्धार्थ नगर) ख़ास तौर पर मिला हैl आपका निवास वर्तमान में अंधेरी(पश्चिम)मुंबई में हैl आपके साझा संकलन-अनवरत,आमने सामने,१४ काव्य रश्मियाँ,प्रेमाभिव्यक्ति,सिर्फ़ तुम और मुम्बई के कवि निकले हैंl