मौन , शब्द से व्यापक अभिव्यक्ति है !

0 0
Read Time7 Minute, 25 Second

● अनिल त्रिवेदी

मौन का विस्तार अनन्त है या यह भी कहा जा सकता हैं कि मौन की व्यापकता सीमा से परे होकर मौन पूर्णत:असीम हैं। मौन ध्वनि विहीन होते हुए भी सार्थक होकर, एक तरह से शब्दों की निराकार अभिव्यक्ति है। जैसे प्रकाश निशब्द होकर सतत कम ज्यादा तीव्रता से कालक्रमानुसार अभिव्यक्त होता ही रहता है वैसे ही मौन भी निरन्तर निःशब्द स्वरूप में सदैव अस्तित्व में बना ही रहता है। मौन असीम हैं तो शब्द ससीम हैं ऐसा माना जा सकता है। मौन धरती और आकाश में हर कहीं व्याप्त है तो शब्द का विस्तार हमारी मौन मुद्रा भंग से ही प्रारंभ होता है। मौन का अस्तित्व, समापन या भंग होते ही हमें शब्दों को अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है। मौन में शब्द सुप्तावस्था या शून्य में समाधिस्थ हो जाते हैं,मौन में असंख्य शब्द सुप्तावस्था में समाये रहते हैं। शब्दों की अभिव्यक्ति मौन को शब्दों के स्वरूप अर्थात ध्वनि और अर्थ में प्रगट कर निराकार ब्रह्म यानी शब्दों को साकार स्वरूप में अस्तित्व प्रदान करते प्रतीत होते हैं। जड़ तत्व ध्वनि को उत्पन्न कर सकता है पर शब्दों की उत्पत्ति मानवीय चेतना का एकाधिकार है।जीवन और जीव दोनों ही मौन और शब्दों के स्वरूप को अपने जीवन में ऐसे एकाकार कर लेते हैं जिसे सामान्य रूप से पृथक-पृथक करना संभव नहीं है।न तो कोई आजीवन मौन हो सकता है और न ही कोई आजीवन बिना रुके या निरंतर शब्दों को ध्वनि या अभिव्यक्ति दे सकता है। शब्दों का उच्चारण नहीं करना मौन नहीं होता है। बिना बोले गुमसुम हो जाना या एकदम चुप और मौन हो जाना दोनों ही भिन्न भिन्न स्थिति है। मौन हमेशा चुप रहना ही नहीं है मौन की मुखरता मारक,तारक और उद्धारक भी हो सकती है।मौन होना याने महज़ ध्वनि का शुद्ध अभाव मात्र ही नहीं होता वरन् शब्दों के जन्म से पहले की मनःस्थिति जैसा नैसर्गिक शांत स्वरूप भी माना जा सकता है। जैसे नकारात्मक विचारों की उथल-पुथल के थम जाने को कुछ हद तक मानसिक शांति का अहसास हम मानते या समझते हैं वैसी अवधारणा मौन को लेकर नहीं बनायी जा सकती है। मौन एक प्राकृतिक अवस्था है जिसमें शून्य से लेकर आकाश तक में समायी निस्तब्ध शांति या निसर्ग में समायी नीरवता से यदि प्रत्यक्ष साक्षात्कार हुआ हो तो ही मौन की मौलिकता को समझा जा सकता है। मौन को ध्वनि के अभाव या गूंगेपन या अबोलेपन या जानबूझकर ओढ़ी चुप्पी से नहीं समझा जा सकता है। मौन को गहराई से भी नहीं समझा जा सकता क्योंकि मौन का कोई आकार प्रकार या रूप स्वरूप नहीं है फिर भी मौन से सहमति असहमति दोनों की अभिव्यक्ति हो सकती है। यदि प्रकाश के अभाव,जीव जिसमें वनस्पति भी समाहित है की जीवन्त हलचल का अभाव और व्यापक निरवता का धनधोर सन्नाटा पसरा हुआ है तो मौन या निस्तब्ध शांति भयग्रस्त मानसिक तनाव और अकारण अशांति को उत्पन्न कर सकती हैं।इसके उलट पूर्णिमा के चन्द्रमा की शीतल चांदनी और शांति पूर्ण मनःस्थितिवाला मौन मनुष्य को आनन्द की अनुभूति का अनुभव सहजता से कराती हैं।
मौन मनुष्य जीवन का अनोखा अनुभव है, जिसमें कभी भी अभिव्यक्ति में अपूर्णता नहीं है। जैसे कहा गया है कि शून्य में से शून्य को यदि दे निकाल तो भी शेष तब भी शून्य ही रहता सदा। याने शून्य या मौन एक प्राकृतिक अवस्था है जो हमारे अंदर बाहर सदा सर्वदा मौजूद हैं। शब्द और ध्वनि मनुष्य या जीव की कृति है पर मौन और शून्यता जीवन और जीव की प्रकृति है। शब्द कृति है मौन प्रकृति है। जगत में प्रकृति का अस्तित्व सदा सर्वदा से है वैसे ही जीवन में या जीव में मौन की मौजूदगी जीवन की सनातन अभिव्यक्ति है। जीवन महज़ निरन्तर हलचल मात्र ही नहीं है। अनन्त शांति या मौन की मौजूदगी प्रकृति और जीवन की व्यापकता और मौलिकता को निशब्द समझाती प्रतीत होती है। यही मौन की मौजूदगी और मौलिकता की अभिव्यक्ति है जो अनुभूत तो होती है पर शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती है। मौन में शब्दों को शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करने के बजाय निःशब्दता को शब्दों से परे रहकर व्यापक रूप से व्यक्त किया जाता है। मौन की अभिव्यक्ति और अनुभूति सहजता से अनन्त को समझने की सबसे अच्छी प्राकृतिक अवस्था है। मौन प्रकृति है या प्रकृति ही मौन है। जगत में मनुष्यों को जीवन के अंतहीन प्रवाह में हर क्षण सोचने, समझने और अनुभूत करने का अवसर मिलता है। पर मनुष्य शब्दों से परे रहकर निशब्द मौन की व्यापकता को जानते हुए भी शब्दों के सानिध्य से दूर नहीं हो पाता इसलिए मौन प्राकृतिक अवस्था के बजाय मनुष्यों की साधना के रूप में विकसित हुआ प्रतीत होता है। मौन आकाश, प्रकाश और समय की तरह ही जीवन और प्रकृति का अभिन्न अंग है और इस तरह से हमारे जीवन, चिंतन और मनन में रचा बसा है जिसे शब्दों से परे रहकर निशब्द होकर ही जाना समझा और मानसिक रूप से अभिव्यक्त, अनुभूत और आत्मसात भी किया जा सकता है।

अनिल त्रिवेदी,

अभिभाषक एवं स्वतंत्र लेखक,
इन्दौर, मध्यप्रदेश

त्रिवेदी परिसर, ३०४/२ भोलाराम उस्ताद मार्ग, ग्राम पिपल्याराव, आगरा मुम्बई राजमार्ग, इन्दौर मध्यप्रदेश।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

प्रभात झा: लोकसंग्रह और संघर्ष से बनी शख्सियत

Fri Jul 26 , 2024
-प्रो.संजय द्विवेदी    यह नवें दशक के बेहद चमकीले दिन थे। उदारीकरण और भूमंडलीकरण जिंदगी में प्रवेश कर रहे थे। दुनिया और राजनीति तेजी से बदल रहे थी। उन्हीं दिनों मैं छात्र आंदोलनों से होते हुए दुनिया बदलने की तलब से भोपाल में पत्रकारिता की पढ़ाई करने आया था। एक […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।