आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और मीडिया के उलझे रिश्ते

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-प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी,
पूर्व महानिदेशक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली

“माननीय प्रधानमंत्री जी हम आभारी हैं कि आप हमारे बीच आए। मेरी ऑन दी जॉब लर्निंग अब शुरू हो गई है और 2024 तक मैं देश की सबसे अच्छी जर्नलिस्ट होने की कोशिश करूंगी। उम्मीद करती हूं कि तब आपसे एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू करने का मौका मुझे मिलेगा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।” ये शब्द हैं भारत की पहली एआई बॉट एंकर सना के। आर्टिफिशनल इंटेलिजेंस के मीडिया जगत में बढ़ते इस्तेमाल की कई संभावनाएं हैं। इसी में से एक है कि आने वाले समय में देश के प्रधानमंत्री एक एआई एंकर से देश के भविष्य और योजनाओं के बारे में चर्चा करते दिखें।

दरअसल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ‘टेक्स्ट टू स्पीच’ फीचर की बदौलत अब भारतीय न्यूजरूम में मशीन को इंसानी चेहरे में ढालकर खबरें पेश की जा रही हैं। पिछले साल अप्रैल के महीने में इंडिया टुडे ग्रुप ने एआई एंकर से समाचार बुलेटिन का प्रसारण शुरू किया था। लॉन्च कार्यक्रम में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में एंकर का परिचय देते हुए कहा गया था कि वह ब्राइट है, सुंदर है, उम्र का उन पर कोई असर नहीं होता है और न ही कोई थकान होती है, वो बहुत सारी भाषाओं में बात कर सकती हैं।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारी दुनिया को फिर से परिभाषित करने, मानवीय क्षमता की सीमाओं को पार करने और अभूतपूर्व पैमाने पर उद्योगों और अर्थव्यवस्थाओं को नया आकार देने के लिए तैयार है। मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र में, एआई का आगमन कंटेंट क्रिएटर्स को सामग्री निर्माण के लिए शक्तिशाली उपकरणों से सशक्त बना रहा है, नए अनुभवों को अनलॉक कर रहा है और कलात्मक अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों का उपभोग करने, बनाने और उनसे जुड़ने के तरीके को हमेशा के लिए बदल रहा है।

हाल के कुछ समय से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बहुत चर्चा का विषय बना हुआ है और पत्रकारिता का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रह रहा है। मौजूदा समय में भारत की मेनस्ट्रीम मीडिया का बड़ा हिस्सा विज्ञापन पर निर्भर होकर काम कर रहा है। ऐसे में तकनीक के जरिये डेटा के आधार पर समाचार बुलेटिन प्रस्तुत करना और अन्य काम भी इंसान की जगह मशीन की बदौलत होने ने मीडिया इंडस्ट्री के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। पत्रकारिता के भविष्य से लेकर पत्रकारिता करने वालों के भविष्य को लेकर भी संकट खड़ा होने की बात कही जा रही है। लेकिन एआई पत्रकारिता वास्तव में क्या है? क्या यह चिंता का एक विषय है या फिर सूचना जगत में एक ऐसी नई क्रांति है, जो पत्रकारिता के सही आयाम स्थापित करने में कामयाब हो पाएगी।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और पत्रकारिता

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारे जीवन के लगभग सभी पहलूओं समेत पत्रकारिता में भी शामिल हो गई है। डिजिटल मीडिया की वजह से जाने-अनजाने में ही एआई तकनीक पर आधारित कंटेंट का इस्तेमाल कर रहे हैं। चाहे वह यू-ट्यूब के एल्गोदिरम की वजह से आपको दिखते वीडियो हों या वेबसाइट पर दिखने वाले विज्ञापन। सभी का एक कारण एआई तकनीक ही है। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की वजह से एआई पत्रकारिता में बड़ी भूमिका निभा रहा है। मीडिया कंपनियां अपने कंटेंट को अधिक बूस्ट करने के लिए एआई की मदद ले रही हैं। लेख लिखने से लेकर बुलेटिन प्रसारित करने तक में एआई का सहारा लिया जा रहा है। दुनिया भर के बड़े-बड़े मीडिया हाउस एआई द्वारा लिखे लेख को प्रकाशित कर रहे हैं। एक तरफ तो यह काम को आसान और तेजी से कर रहा है, दूसरी ओर यह कई सवाल भी खड़े करता है जिसमें विश्वसनीयता और अखंडता सबसे पहले है। साथ ही क्या सजृनशीलता पर आधारित क्षेत्र में एआई से डेटा आधारित बातचीत और जानकारी, पत्रकारिता के धरातल पर काम कर पाएगी? पत्रकारिता के सबसे मजबूत और शुरुआती मूल्य ‘ग्राउंड रिपोर्टिंग’ का भविष्य इससे बच पाएगा?

खतरे में पत्रकारों की नौकरियां

इंसान की जगह मशीन के इस्तेमाल होने का पहला खतरा इंसानों पर ही पड़ता है। ‘न्यूज़जीपीटी’, दुनिया का पहला समाचार चैनल है, जिसका पूरा कंटेंट आर्टिफिशल इंटेलिजेंस द्वारा तैयार किया जा रहा है। चैनल के प्रमुख एलन लैवी ने इसे खबरों की दुनिया का गेम चेंजर कहा था, क्योंकि ना इसमें कोई रिपोर्टर है और ना ही यह किसी से प्रभावित है। यहां यही बात मीडिया जगत में काम करने वाले लोगों के लिए बड़ा खतरा है। जैसे-जैसे मीडिया के क्षेत्र में एआई का प्रभुत्व बढ़ रहा है, वहां मौजूदा लोगों की नौकरियों पर तकनीक का कब्जा होने की संभावना ज्यादा नजर आ रही है। लेखन, संपादन, एंकरिंग, प्रस्तुतीकरण तक के सारे कामों में एआई का सहारा लिया जा रहा है।

बीबीसी द्वारा प्रकाशित एक समाचार के अनुसार साल 2020 में माइक्रोसॉफ्ट ने बड़ी संख्या मे ‘एमएसएन’ वेबसाइट के लिए लेखों के चयन, क्यूरेटिंग, हेडलाइन तय करने और एडिटिंग करने वाले पत्रकारों की जगह स्वचलित सिस्टम को अपनाने की योजना बनाई। खबर के अनुसार कंपनी ने एआई तकनीक के सहारे खबरों के प्रोडक्शन के कामों को पूरा करना तय किया। माइक्रोसॉफ्ट जैसी अन्य टेक कंपनियां मीडिया संस्थानों को उनका कंटेंट इस्तेमाल करने के लिए भुगतान करती हैं। इन सब कामों के लिए पेशेवर पत्रकारों की मदद ली जाती आई है, जो कहानियां तय करने, उनका प्रकाशन कैसे होना है, हेडलाइन तय करने जैसे काम करते हैं। लेकिन माइक्रोसॉफ्ट के एआई तकनीक के इस्तेमाल के बाद से लगभग 50 न्यूज प्रोड्यूसर्स को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी।

ठीक इसी तरह साल 2022 के अंत में अमेरिकी टेक्नोलॉजी न्यूज वेबसाइट ‘सीएनईटी’ एआई तकनीक का इस्तेमाल करते हुए चीजें अलग ही स्तर पर ले गई। कंपनी ने एआई प्रोग्राम के तहत लिखे गए दर्जनों फीचर लेख चुपचाप तरीके से प्रकाशित किए। जनवरी 2023 तक कंपनी ने इन सब अटकलों की पुष्टि नहीं की थी, जिसे केवल एक प्रयोग बताया जा रहा था। इतना ही नहीं एसोसिएटेड प्रेस ने भी अपनी कहानियों के लिए एआई का इस्तेमाल किया। ये सब बातें बताती हैं कि कैसे समाचारों को चुनने, उनको व्यवस्थित करने के लिए काम करने वाले मीडिया के पेशेवरों की नौकरियां एआई ले रहा है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अपने शुरुआती दौर में है, लेकिन अभी से न्यूजरूम के भीतर उसकी मौजूदगी से मीडिया पेशवरों की नौकरियों पर संकट बनना शुरू हो चुका है। डायच वेले के अनुसार हाल ही में यूरोप के सबसे बड़े पब्लिकेशन हाउस ‘एक्सल स्प्रिंगर’ ने कई संपादकीय नौकरियों को एआई में बदल दिया है। स्प्रिंगर में नौकरियों की कटौती से मीडिया उद्योग के रोबोट पर निर्भरता की आशंकाओं में तेजी ला दी है।

न्यूजरूम में एआई एंकर

भारत समेत कई अन्‍य देशों में न्यूज एंकर के तौर पर कम्प्यूटर जनित मॉडल यानी एआई एंकर समाचार पढ़ते नज़र आ रहे हैं। बहुत हद तक इंसानी तौर पर दिखने वाले ये न्यूज एंकर कॉर्पोरेट मीडिया हाउस के मुनाफे वाले दृष्टिकोण से हितैषी हैं, क्योंकि इन्हें न कोई सैलरी की आवश्यकता है, ना छुट्टी की। ये 24 घंटे और सातों दिन डेटा के आधार पर काम कर सकते हैं। भारत की पहली एआई न्यूज एंकर सना के लॉन्च के समय इसी तरह के शब्द कहे गए थे कि वह बिना थके लंबे समय तक काम कर सकती है।

द गार्डियन के अनुसार साल 2018 में चीन की न्यूज एजेंसी ‘शिन्हुआ’ पहला एआई न्यूज एंकर दुनिया के सामने लाई। इस एजेंसी के किउ हाओ पहले एआई एंकर हैं, जिसने डिजिटल वर्जन पर समाचार प्रस्तुत किया। शिन्हुआ और चीनी सर्च इंजन सोगो द्वारा यह एआई एंकर विकसित किया गया है। प्रकाशकों ने चीन के वार्षिक वर्ल्ड इंटरनेट कॉन्फ्रेंस के क्रार्यक्रम के दौरान इसकी घोषणा की थी। इसी से जुड़ी दूसरी के अनुसार पिछले वर्ष चीन ने एआई महिला न्यूज़ एंकर रेन जियाओरॉन्ग को लॉन्च किया। चीन सरकार केंद्रित पीपल्स डेली अखबार ने दावा किया है कि इस एआई न्यूज एंकर ने हजारों न्यूज एंकर्स से स्किल सीखे हैं और वह 365 दिन 24 घंटे लगातार खबरें बता सकती है। चीन के अलावा कुवैत भी अपना एआई न्यूज एंकर लॉन्च कर चुका है। हाल ही में ‘न्यूज 18’ के पंजाब और हरियाणा के क्षेत्रीय चैनल की तरफ से भी एआई एंकर के बारे में बात की गई। इस एंकर का नाम एआई कौर है। हाल ही में रूस के स्वोए टीवी ने स्नेज़ना तुमानोवा को पहले वर्चुअल मौसम की खबर प्रस्तुत करने वाले के रूप में पेश किया।

इस तरह से दुनिया के अलग-अलग मीडिया संस्थानों की ओर से एआई तकनीक के न्यूज एंकर को लॉन्च किया जा रहा है। एक के बाद एक एआई न्यूज एंकर के लॉन्च को मीडिया की नई क्रांति और बदलाव बताया जा रहा है। अब यह देखना होगा कि सूचना के क्षेत्र में एआई समावेशिता, विश्वसनीयता स्थापित कर पाती है या नहीं। क्योंकि अगर अब तक लॉन्च एआई एंकर्स के रूप-आकार को लेकर बात करे तो उससे पूरी तरह समावेशिता गायब है। लॉन्च एंकर का आकार यूरो सैंट्रिक ब्यूटी स्टैंडर्ड को ध्यान में रखकर गढ़ा गया है जैसे गोरा रंग, एक ख़ास तय किस्म की बॉडी आदि। सूचना के क्षेत्र में प्रस्तुतिकरण में इस तरह से पूर्वाग्रहों को और स्थापित करने का काम किया जा रहा है।

एआई की दुनिया और विश्वसनीयता

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अभी अपने शुरुआती चरण में है, लेकिन यह देखना वास्तव में बहुत दिलचस्प होगा कि यह पत्रकारिता को किस तरह से बदलेगा। क्योंकि आज क्लिकबेट पत्रकारिता, फेक न्यूज और प्राइम टाइम में चिल्लाने वाली पत्रकारिता का दौर है। ऐसे में क्या रोबोट, इंसानी रवैये के इतर विवेक के साथ पत्रकारिता करेंगे? प्रसिद्ध मीडिया स्तंभकार पामेल फिलिपोज ने कहा है कि एआई और उसके इस्तेमाल से पैदा खतरे वास्तविक हैं। एआई अधिक बहुस्तरीय समस्या को पैदा कर सकता है, जैसे एआई दुष्प्रचार अधिक फैला सकता है।

फिलिपोज ने आगे कहा है कि फेक न्यूज अब व्हाट्सएप टेक्स्ट और तस्वीरों के माध्यम से प्रसारित की जाती हैं और एआई की पूरी क्षमता रॉ डेटा को पुर्नजीवित करना है। इस तरह बहुत से पत्रकार और मीडिया पेशवरों का मानना है कि एल्गोदिरम और ऑटोमेशन पर बढ़ती निर्भरता से पत्रकारिता की विश्वसनीयता कम होने का खतरा है।

एआई न्यूज एंकर या पत्रिकारिता में एआई की निर्भरता सूचना क्षेत्र के भविष्य के लिए दोधारी तलवार है। एक तरफ इससे मीडिया के नयेपन और संचार के क्षेत्र की अपार संभावनों पर ध्यान दिया जा रहा है। वहीं इसे नैतिक और जिम्मेदारी तय करने के लिए रेग्यूलेशन और निरीक्षण की आवश्यकता भी है। ऐसे दौर में जहां मीडिया में पहले से ही ग्राउंड रिपोर्ट, खोजी पत्रकारिता और जनपक्ष की कमी है, उस समय में एआई तकनीक का बढ़ता प्रभाव सूचनाओं से मानवीय पक्ष को खत्म करने वाला ज्यादा नजर आ रहा है।

प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी,

(पूर्व महानिदेशक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।