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‘माँ आई है’ कहकर छोटू दौड़ा और जाकर अपनी माँ से लिपट गया । माँ बस पीठ थपथपाती रही …दोनों तरफ एक महासागर था जो उमड़ पड़ने को आतुर था पर घरौंदों के बह जाने के डर से वह शांत ही रहा ।
उसे अभी दो मिनट भी नहीं हुआ होगा कि मालिक ने आवाज़ लगाई “छोटू” जल्दी आ ग्राहक खड़े हैं। और तू है कि माँ के प्यार दुलार में लगा है । माँ से ज्यादा ही प्यार आ रहा हो तो बता छुट्टी कर देता हूँ तेरी … अपना हिसाब ले जा और आराम से अपनी माँ से मिल…….
आया साहब ! छोटू ने जवाब दिया ।
बइठौ अम्मा! छोटू ने न – न बड़के ने कहा –
नाहीं भैया हम हिया न बैठब…वहर पाछे बैठित है जब छुट्टी पायव तब आयव ..।
कहाँ मर गया छोटू मालिक ने फिर आवाज लगाई । इस बार छोटू को जाना ही पड़ा ।
अभी एक साल पहले ही तो उसके बाप की मौत हुई थी । था तो शराबी ही पर मेहनत मजदूरी करके कैसे भी अपना घर तो चला ही लेता था । बच्चे तो बच्चे ही होते हैं वो चाहे अमीर के हो या गरीब के इससे माँ बाप के प्यार में कोई फर्क थोड़ी न पड़ता है । बड़के भी राजा था पर बाप की असमय मृत्यु की वजह से छोटू बन गया ।
माँ होटल के बाहरी दीवार से सटी हुई बैठी थी । और पल्लू की वोंट से बार बार बेटे को दौड़ भाग करते देख रही थी । उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ये वही ‘बड़के’ है जो बार बार उठाने के बाद भी नहीं उठता था । खिलाने की लाख जिद के बाद खाता था ….। और आज एक मझे हुए आदमी की तरह प्लेटें उठाता है। दौड़ाकर ऑर्डर भी दे आता है ….नौ साल का बड़के सही में आज बड़ा हो गया था ।
माँ गुड़िया ठीक है ?
छोटू ग्राहकों के जाने के बाद फिर से माँ के पास आ गया था।
हां भैया ठीके है !लकिन तुहैँ खत्तिर बहुत रोवति है। रोज़ संझा का कहति है कि भैया अइहैं तब्बै खाबे…
कउनो बात नै है अम्मा देवारी मा आइब,
ठीक है भैया कोई मारत वारत तौ नाइ है ?
नाहीं अम्मा हिया सब ठीक है । हाल चाल पूछते पूछते माँ ने अपने हाथों से अपने बड़के के पूरे शरीर का निरीक्षण कर लिया था ।
ई का भवा भैया ? माँ का हाथ अचानक उसके दाहिने कंधे पर ठिठक गए थे ।
कुछू नै अम्मा नल पर गिरि गयन रहा …
पूरे सोलह सौ रुपये में बड़के ने ये छोटू वाली नौकरी पर हाथ मारा था । छोटा मोटा होटल कह लीजिए या चाय समोसा और पकौड़ी की दुकान पर छोटू के लिए तो मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा सब यही था ।
मालिक पैसे देदो माँ आई है । छोटू ने अपना हक जताया ।
ठीक है ठीक है देता हूँ , मालिक ने जवाब दिया ।
ये क्या पंद्रह सौ रुपये ? बात तो सोलह सौ पर हुई थी । छोटू हिसाब लगा रहा था ।
हाँ -हाँ हुई थी पर पूरे महीने जो तूने गिलास और प्लेटें तोड़ी हैं उसकी भरपाई क्या तुम्हारी माँ करेगी … मालिक की जुबान में बेशर्मी उतर आई थी ।
ठीक है ठीक है काट लो कोई बात नहीं..
आखिरी बस जाने महज़ आधे घंटे ही शेष था उसे माँ को बस भी पकड़वानी थी सो वह जल्दी में था । बगल वाली दुकान से दौड़कर एक गुड़िया ले आया । कुछ टाफियां ली और बचे हुए पैसों के साथ सारा सामान भी माँ के आंचल में रख दिया ….
माँ जाने ही वाली थी कि छोटू चिल्लाया रुको अम्मा एक सामान आउर है ।
छोटू दौड़कर गया और अपने झोले में रखी वो पन्नी भी ले आया ।
अरे दुकान का सामान चुराकर घर भेज रहा है मालिक छोटू की तरफ लपका …
‘नाही साहेब हमार भैया चोरी न करिहै’ माँ ने चिरौरी की
छोटू सुन्न खड़ा रहा ।
मालिक ने पन्नी पकड़ी और वहीं फर्श पर छितरा दिया ।
ग्राहकों द्वारा छोड़ी गई पकौड़ियां आधे खाये हुए समोसों के टुकड़े आधे खाये तले हुए मिर्चे और सोहाल के टुकड़े फर्श पर बिखर गए थे ……
छोटू का कान पकड़ने के लिए मालिक का उठा हाथ जैसे स्टेचू बन गया था । दुकान में आये ग्राहक भी मूर्ति बन गए थे।
#दिवाकर
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