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गुरूपूर्णिमा का पावन दिन,दरबार में शिष्यों का तांता लगा हुआ है। आज गुरूजी के दर्शन के लिए सुशील अपनी माता जी को भी ले आया। माताजी ने सुशील का हाथ पकड़कर गुरू गादी तक का सफर तय किया। प्रणाम,कर माताजी गुरू का अभिवादन कर बैठी ही थी कि, गुरूजी ने माताजी से पूछ ही लिया-`बहना तुम्हारा गुरू कौन है ? क्या गुरू दीक्षा ली या बिना दीक्षा के ही जाने का इरादा है`।
गुरूजी के प्रश्न का माताजी ने बड़ी विन्रमता से उत्तर दिया-`भगवन मैंने स्वयं से ही दीक्षा ली है,और मेरे तीन गुरू हैं`। यह सुनकर गुरूजी अचरज में पड़ गए। माताजी ने कहा कि-‘मेरा पहला गुरू मेरे माता-पिता हैं,जिन्होंने मुझे जन्म दिया, जीवन शिक्षण और संस्कार दिए। दूसरे गुरू मेरे पति थे,जिनकी आज्ञा का पालन ही मेरा सर्वोपरि कर्म रहा। मैंने कभी भी पति आज्ञा की अवहेलना नहीं की,उसे गुरू आदेश मानकर जीवन सफर तय किया। और मेरा तीसरा गुरू मैंने परिवार को माना’।
इन वचनों को सुनकर गुरूवर ने माताजी को प्रणाम कर अभिवादन किया और सम्मान स्वरूप श्रीफल भेंट किया। गुरूजी ने कहा-‘आपने सही मायनों में गुरू दीक्षा ली है,और गृहस्थाश्रम को पूर्ण करने जा रही हैं,आप धन्य हैं’।
#विजयसिंह चौहान
परिचय : विजयसिंह चौहान की जन्मतिथि ५ दिसंबर १९७० और जन्मस्थान इन्दौर हैl आप वर्तमान में इन्दौर(मध्यप्रदेश)में बसे हुए हैंl इन्दौर शहर से ही आपने वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ विधि और पत्रकारिता विषय की पढ़ाई की हैl आपका कार्यक्षेत्र इन्दौर ही हैl सामाजिक क्षेत्र में आप सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय हैं,तो स्वतंत्र लेखन,सामाजिक जागरूकता,तथा संस्थाओं-वकालात के माध्यम से सेवा भी करते हैंl विधा-काव्य,व्यंग्य,लघुकथा व लेख हैl उपलब्धियां यही है कि,उच्च न्यायालय(इन्दौर) में अभिभाषक के रूप में सतत कार्य तथा स्वतंत्र पत्रकारिता में मगन हैंl
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Great thoughts….. our experience is also a great teacher, it teaches us the way to survive in this life full of deceits and back stabbers