ये कैसा काले जादू का सम्मोहन
छाया है चारों ओर देश में
जल रही हैं चिंताये श्मशानों में
शव वाहिनी बनकर रो रही है गंगा
बेरोजगारी से सिसक रहा है युवा शिक्षित भारत
बाढ़ से अपने ही खेत, खलिहान, आशियानों को बहता देखता गरीब, मजदूर ,किसान आदमी ।
पेट की आग बुझाने के लिए
अपनी ही बहन बेटियों की इज्जत को
सरेआम बेचता बेबस आदमी ।
चारों ओर मचा हुआ है तांडव
गरीबी, भुखमरी, बेबसी का
फिर ही ऑल इज वेल के
नारों को बुलंद करती अंधभक्ति ।
लूट के बाद लूट फिर महालूट से
नेताओं, ऑफिसरों और पूंजीपतियों की
जेब भरता भिखमंगा और कायर आदमी ।
जातीयता की चुप्पी से अपने होठों को सिलकर
मन ही मन घुटता डरपोक समाज का आदमी ।
अर्थहीन सी सरकारी योजनाओं के
लाली पापों को चूसता
बेवकूफ समाज का आदमी ।
सत्ता के ठेकेदारों के तलवे और
थूक चाटने को मजबूर निष्क्रिय
निकृष्ट, सोने की चिड़िया रहे देश का आदमी ।
अच्छे दिनों के दिवास्वप्न की
मूर्छा में जीता
विश्व गुरु होने का दंभ भरने वाला
बेसुध देश का आदमी।
यह कैसा काले जादू का सम्मोहन
छाया है सारे देश में
जल रही है चितायें श्मशानों में
किंतु हर कहीं है तो
बस खामोशी, खामोशी और खामोशी…….???