पहचान

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devendr soni
सम्पन्न और शिक्षित परिवार में जब रमेश के यहां पहली पुत्री का जन्म हुआ,तो पूरे कटुम्ब में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। ऐसा नहीं था कि,इस परिवार में पहले किसी कन्या का जन्म नहीं हुआ था,पर रमेश के घर जब कन्या ने जन्म लिया तो यह कहकर खुशियां मनाई गईं कि-रमेश भी बड़भागी है,जो उसके घर भी पहले-पहल लक्ष्मी का आगमन हुआ। रमेश की ख़ुशी इस बात को लेकर थी कि,भले ही लक्ष्मी चलायमान होती है,पर भविष्य में किसी और परिवार को सम्रद्ध करेगी,उसे कन्यादान का गौरव भी मिलेगा। उसका नाम भी `लक्ष्मी` ही रखा गया।
समय अपनी गति से चलता रहा और लक्ष्मी की किलकारियों से रमेश का घर गूंजने लगा। जो भी आता लक्ष्मी की तारीफ किए बिना नहीं रहता,पर नियति को कुछ और ही मंजूर था। तीन वर्ष की उम्र में पूर्ण सावधानी बरतने के बाद भी लक्ष्मी पोलियो का शिकार हो गई। चिकित्सा चलती रही और उसका उछलता-कूदता बचपन घिसटने लगाl उम्र बढ़ती रही और इसके साथ ही उसकी शिक्षा भी चलती रही। बैसाखियों के सहारे,जमाने के तंज की परवाह किए बिना लक्ष्मी ने इसे अपनी नियति मान सहर्ष स्वीकार लिया और स्नातोकोत्तर हो गई। इस बीच पिता के देहावसान ने उसे तोड़कर रख दिया,पर लक्ष्मी ने हिम्मत नहीं हारी। अब उसे अपने अलावा अपनी मां का भी ध्यान रखना था। पिता की पेंशन और पैतृक सम्पति इतनी थी कि,दोनों का जीवन आराम से कट सकता था,पर लक्ष्मी को अपनी पहचान भी बनानी थी,और पिता के नाम को भी रोशन करना था। उसने बी.एड. की पढ़ाई जारी रखी और जल्द ही व्याख्याता बन गईl  सरकारी नौकरी तो मिली,पर जब दूर के किसी ग्रामीण अंचल में पदस्थापना हुई तो सबने मना कियाl तब लक्ष्मी ने अनेक दिक्कतों को दरकिनार करते हुए इस चुनौती का भी सामना किया। उसकी मेहनत से उसे यथासमय पदोन्नति भी मिलती रही। बढ़ती उम्र के साथ ही उसकी आध्यात्मिक रूचि भी बढ़ती गई,और देखते ही देखते वह `गुरु मां` के रूप में पहचानी जाने लगी। सबकुछ ठीक चल रहा था,लेकिन नियति से यहां भी लक्ष्मी की खुशियां देखी नहीं गई और एक दिन अचानक तबियत बिगड़ गई। चिकित्सकों से मस्तिष्क कैंसर की जानकारी मिली,पर लक्ष्मी ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी। वह सबको हौंसला देती और मां का ध्यान रखती,पर अन्ततः एक दिन अपनी बीमारी से हार गईl अपने परिजनों को रोता-बिलखता छोड़ वह संसार से विदा हो गई।
अविवाहित रहकर लक्ष्मी किसी और का घर तो समृद्ध न कर सकी,पर उसने उस मुकाम पर पहुंचकर अपनी पहचान बनाई,तथा प्रेरणा दी,जहां सामान्यतः लोग अवसाद से घिर कर अपनी पहचान खो देते हैं।

                                           #देवेन्द्र सोनी 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।