ख्यात साहित्यकार हिमांशु जोशी जी ने ली दैहिक विदाई 

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दिल्ली |
मूर्धन्य कहानीकार और उपन्यासकार सहित हिन्दी साहित्य के नक्षत्र खेतीखान निवासी प्रख्यात साहित्यकार हिमांशु जोशी का निधन हो गया है। 83 वर्षीय हिमांशु जोशी लंबे समय से बीमार थे। गुरुवार रात दिल्ली में उन्होंने आखिरी सांस ली। उनके निधन से इलाके में शोक की लहर है।
आदरणीय हिमांशु जोशी जी ने आज 23 नवंबर 2018 को हम सबके बीच ये दैहिक विदाई ले ली |
मातृभाषा उन्नयन संस्थान दिवंगत आत्मा को सदगति प्राप्त हो ऐसी कामना परमात्मा से करता है|
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि सहित…
*आदरणीय हिमांशु जोशी जी का जीवन वृत*
*जन्म की तारीख :* 04 मई, 1935 (04-5-1935)
*जन्मस्थान :* जोस्यूड़ा, चम्पावत(उत्तराखण्ड)
*पारिवारिक परिचय:*
*माता-* स्व॰ तुलसी देवी
*पिता-* स्व॰ पूर्णानन्द जोशी (स्वतन्त्रता सेनानी)
*पत्नी-* श्रीमती पार्वती जोशी
*संतान-*
पुत्र- अमित, सिद्धार्थ, असित
*शिक्षा-* आरम्भिक शिक्षा खेतीखान में। पाँच वर्ष नैनीताल में।
*भाषाज्ञान –* हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू
*कार्यक्षेत्र-* सन् 1956 से पत्रकारिता में। ‘कादम्बिनी’(1968-71), वरिष्ठ पत्रकार ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’(1971-1993)। दूरदर्शन व आकाशवाणी के लिए भी कार्य किया। हिन्दी फिल्मों में भी लेखन कार्य।
*प्रकाशित पुस्तकें –* उपन्यास-अरण्य(1965), महासागर(19710, छाया मत छूना मन(1974), कगार की आग(1975), समय साक्षी है(1976), तुम्हारे लिए(1978), सु-राज(1980)
*कहानी संग्रह-* अन्तत: तथा अन्य कहानियाँ(1965), अथचक्र(1975), मनुष्य-चिह्न तथा अन्य कहानियाँ(1976), जलते हुए डैने तथा अन्य कहानियाँ(1980), तपस्या तथा अन्य कहानियाँ(1992), आंचलिक कहानियाँ(1993) गंधर्व-गाथा(1994), श्रेष्ठ प्रेम कहानियाँ(1995), चर्चित कहानियाँ(2000), दस कहानियाँ(2001), नंगे पाँवों के निशान(2002), हिमांशु जोशी की चुनी हुई कहानियाँ(2004), प्रतिनिधि लोकप्रिय कहानियाँ(2004), इस बार फिर बर्फ़ गिरी तो(2005), सागर तट के शहर(2005), इकहत्तर कहानियाँ(2006), अगला यथार्थ(2006), चुनी हुई कहानियाँ(2009), पाषाण-गाथा(2010)  कविता संग्रह-नील नदी का वृक्ष(2008) वैचारिक संस्मरण-संकलन-उत्तर-पर्व(1995), आठवाँ सर्ग(1997) *साक्षात्कार-* मेरा साक्षात्कार(2003), यात्रा-वृत्तांत-यात्राएँ(1997), नार्वे:सूरज चमके आधी रात(1989), जीवनी तथा खोज-अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ(1999), यातना-शिविर में(अंडमान की अनकही कहानी)(2001),
*रेडियो-नाटक-* सु-राज तथा अन्य एकांकी(2001), कागज की आग तथा अन्य एकांकी(2003), समय की शिला पर(2004)
*बालसाहित्य-* अग्नि संतान(उपन्यास, 1975), विश्व की श्रेष्ठ लोककथाएँ(14 भाषाओं में, 1979), तीन तारे(बाल उपन्यास, 1985), बचपन की याद रही कहानियाँ(1985), भारतरत्न : पं॰ गोविन्द बल्लभ पन्त(जीवनी, 1989), काला पानी(14 भाषाओं में, 1990), हिम का हाथी(कहानी संग्रह, 1995), अमर कैदी(2002), सुबह के सूरज(2007)
*पुरस्कार व सम्मान-* ‘छाया मत छूना मन’, ‘मनुष्य चिह्न’, ‘श्रेष्ठ आंचलिक कहानियाँ’ तथा ‘गंधर्व-गाथा’ को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, के पुरस्कार। ‘हिमांशु जोशी की कहानियाँ’ तथा ‘भारत रत्न:पं॰ गोबिन्दबल्लभ पन्त’ को हिन्दी अकादमी, दिल्ली का सम्मान। ‘तीन तारे’ राजभाषा विभाग, बिहार द्वारा पुरस्कृत। पत्रकारिता के लिए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा ‘स्व॰ गणेश शंकर विद्यार्थी’ पुरस्कार से सम्मानित।
अनेक उपन्यासों, कहानियों के अधिकतर भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, नेपाली, बर्मी, चीनी, जापानी, इटालियन, बल्गेरियाई, कोरियाई, नार्वेजियन, स्लाव, चैक आदि भाषाओं में अनुवाद हुए।
*विशेष:* उपन्यास ‘सु-राज’ पर आधारित फिल्म बनी। ‘तुम्हारे लिए’ पर आधारित दूरदर्शन धारावाहिक। ‘तर्पण’, ‘सूरज की ओर’ आदि पर टीवी फिल्में। शरत् चन्द्र के उपन्यास ‘चरित्रहीन’ पर आधारित रेडियो धारावाहिक का निर्देशन। अनेक सरकारी, अर्द्धसरकारी समितियों में हिन्दी सलाहकार।
*सम्प्रति-* स्वतन्त्र लेखन व पत्रकारिता। नार्वे से प्रकाशित पत्रिका ‘शांतिदूत’ के विशेष सलाहकार। हिन्दी अकादमी, दिल्ली की पत्रिका ‘इन्द्रप्रस्थ भारती’ के सम्पादन मंडल के सदस्य।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।