वो मोहब्बत में इतने घाव देते रहे।
हम उन्हें उनका उपहार समझते रहे।
पर हद तो तब हो गई जब मेरे दिये।
फूलों को उन्होंने आर्थी पर रख दिये।
और जिंदा होते हुये भी वो अपनी।
मोहब्बत को मेरी सामने मार दिये।
बहुत शौक वो रखती है लोगों के ।
दिलोंसे इस हुस्नके कारण खेलने में।।
खिले फूल के बहुत माली होते है।
और रूप के बहुत पुजारी होते है।
ये सिर्फ हुस्न के दिवाने होते है।
जिसे दमपर तुम इतराती फिरती हो।
जिस दिन तेरी उम्र और रूप तेरे।
इस यौवन से उतरने लगेगा।
उस दिनसे कोई साथ नहीं देगा।
तब तेरा ये पुजारी ही खड़ा मिलेगा।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन “बीना” मुंबई