इस सुंदर जग को ईश्वर ने बड़े ही प्रेम से बनाया है । जगत में भिन्न-भिन्न जीव जंतु ईश्वर का अद्भुत निर्माण हैं । परंतु सबसे अलग जो निर्माण ईश्वर ने किया है, वह मनुष्य नामक प्राणी का है । संसार में प्रत्येक प्राणी की एक सीमित क्षमता है । लेकिन मनुष्य असीम क्षमता वाला प्राणी है ।
मनुष्य ने अपना विकास एक निश्चित समय सीमा से कहीं ज्यादा किया है । कुछ मनुष्य इंसान के भेष में शैतान होते हैं और कुछ मनुष्य देवता तुल्य होते हैं । शुरू से ही प्रकृति का नियम रहा है कि दिन-रात, धर्म- अधर्म, सुख-दुख, शैतान- इंसान हमेशा साथ-साथ फले -फूले हैं । इनमें कभी बनती नहीं और ये कभी एक दूसरे से अलग भी नहीं हो सके हैं ।
अगर हम इंसानों की बात करें तो इनमें बहुत बड़े-बड़े अवतार पुरुष पैदा हुए हैं । उन्हीं में से एक हैं कबीर ! कबीर अपने युग के सबसे बड़े लोकोपदेशक रहे हैं । उनका साहित्य अमर है । कबीर का जन्म विक्रमी संवत 1455 (सन-1398 ई.) वाराणसी में हुआ था । उनकी मृत्यु विक्रमी संवत 1551 (सन्- 1494 ई.) मगहर में हुई थी । कबीर साहेब 15 वीं सदी के एक रहस्यवादी कवि एवं संत थे । वे हिंदी साहित्य के भक्ति कालीन युग में ईश्वर के महान प्रवर्तक के रूप में उभरे थे । वे हिंदू व इस्लाम धर्म को न मानते हुए धर्म एक सर्वोच्च ईश्वर में अटल विश्वास रखते थे । उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास आदि की कड़ी निंदा की । उनकी आलोचनाओं से हिंदू व मुस्लिम समुदाय के कट्टरपंथी तिलमिला उठते थे ।
कबीर ही नहीं उनका जन्म भी एक रहस्यमयी है –
“ अनंत कोट ब्रह्मांड में, बंदी छोड़ कहाए ।
सो तो एक कबीर हैं, जो जननी जन्या न माए ।। ”
कबीर महाराज जी एक जनसाधारण जीवन जीए और जुलाहे के काम में हमेशा मगन रहे । उन्होंने अपने नाम के साथ दास शब्द का प्रयोग किया और कबीर दास कहलाये ।
कबीरदास जी की प्रमुख शिक्षायें –
1- अहिंसा,
2- मांसाहार करना महापाप,
3- अनुशासन निषेध,
4- गुरु बनाना अति आवश्यक,
5- बिना गुरु के दान करना निषेध,
6- व्यभिचार निषेध,
7- छुआछात निषेध आदि ।
कबीरदास जी की पावन भक्ति में गुरु को प्रथम स्थान मिला है-
“ सतगुर की महिमा अनॅंत, अनॅंत किया उपगार ।
लोचन अनॅंत उघाडिया, अनॅंत दिखावण हार ।। ”
कबीरदास जी मनुष्यों के प्रति कहते हैं –
हे मनुष्यों ! ईश्वर की बनाई हुई संरचना मानव एवं जीव -जंतु रूपी माया से क्यों छल, कपट तथा ठगी आदि करके अपना घर- परिवार तथा रूप – सौंदर्य आदि सजा- संवार रहे हो । यदि अपना घर- परिवार तथा रूप- सौंदर्य आदि सजाना – सॅवारना चाहते हो तो सत्कर्म करो अर्थात संसार रूपी पावन धाम में विराजमान मानव एवं जीव- जंतु रुपी मूर्तियों की अपनी क्षमतानुसार सेवा- सुरक्षा करके परमानंद को प्राप्त हो जाओ । इससे आप मय परिवार को सुख शांति प्राप्त होगी । साथ ही संपूर्ण जगत को भी सुख शांति प्राप्त होगी ।
“ माया दीपक नर पतंग,भृमि-भृमि इवै पडंत ।
कहै कबीर गुरु ग्यान, एक आध उबरत ।।
माया देखि कै जगत लुभानी,काहे रे नर गरबाना ।
कहैं कबीर सुनौ भई साधौ, गूरु के हाथि काहें न बिकाना ।।
खाया पकाय लुटाय के, करिले अपना काम ।
चलती बिरिया रे नरा, संग न चलै छदाम ।।
कबीर यह तन जात है, सको तो राखु बहोर ।
खाली हाथो बह गये, जिनके लाख करोर ।। ”
कबीरदास विषयों के परित्याग पर विशेष बल देते हैं । वे साधा जीवन जीने वाले साधारण पुरुष की तरह हमेशा रहे ।
“ पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोई ।
एकै आषिर पीव का, पढै सु पंडित होई ।। ”
कबीरदास एक महान लोकोपदेशक हैं ।उन्होंने अपनी पावन लेखनी से लोक का कल्याण किया है । कबीर दास जी के उपदेश प्रेरणास्पद और प्रासंगिक हैं । पथभ्रष्ट मानव को सन्मार्ग दिखाता उनका साहित्य अजर -अमर है । कबीर दास की शिक्षा का अनुसरण करके मनुष्य मुक्ति पा सकता है ।
संदर्भ –
1- शोध आलेख – कुरीतियों के निराकरण में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका ( लेखक – डॉ. सिकंदर लाल ) ।
2- विकिपीडिया एवं गूगल सर्च इंजन ।
3- कल्याण, मासिक पत्रिका – अंक जून 2021 (गीता प्रेस गोरखपुर)
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
आगरा, उत्तर प्रदेश