ध्वस्त हुई न्याय व्यवस्था ,
ध्वस्त हुए सारे कानून हैं।
न्याय मिलेगा कैसे बताओ,
जब जिम्मेदार ही मौन हैं।
बड़ी उम्मीद लगाकर कोई,
न्याय के मंदिर में जाता है।
दिल पर पत्थर रख कर वो,
अपनी व्यथा सुनाता है।
अपने दुखड़े रोता है याची ,
हाथ जोड मिन्नतें करता है।
भीख न्याय की मांगने को,
झोली अपनी फैलाता है।
सुनकर दुखड़े याची के ,
सब मंद मंद मुस्काते हैं।
झूठ मूठ का धैर्य बंधाते,
पीठ पीछे षडयन्त्र रचाते हैं।
निर्दोषों को अनदेखा कर,
दोषी को गले लगाते हैं।
गवाहों को आंख दिखाकर,
सबूतों को भी मिटाते हैं।
बेशर्मी ,बेहयाई के नित ,
निर्दोषों पर आरोप लगाते हैं।
खुदखुशी करने को भी ये,
निर्दोषों को उकसाते हैं।
बिक जाते हैं कभी धन से,
कभी अपनों से बिक जाते हैं।
ईमान धर्म को बेच कभी,
कभी लालच में बिक जाते हैं।
गैरों को सजा सुनाते वक्त,
ये जरा रहम ना खाते हैं।
बारी आए जब अपनों की,
तो खुद से नजरें चुराते हैं।
न्याय के ऐसे ठेकेदारों से,
न्याय की क्या उम्मीद करें।
अपना धर्म निभाने में जो,
अपने पराए का भेद करें।
दिन, महीने, साल यहां ,
यूं ही गुजरते जाते हैं।
न्याय की आस लगाए याची,
बैठे बैठे थक जाते हैं।
न्याय की खातिर याची देखो ,
तन मन धन लुटाते हैं।
बेशर्मी ,बेहयाई से दोषी,
खुलेआम मौज उड़ाते हैं।
हे ईश्वर हे दाता मेरे,
अब आप ही चमत्कार करो।
झोली हमारी भर दो दाता ,
आप ही आ कर न्याय करो।
रचना
सपना (स० अ०)
जनपद औरैया