ये यौवन क्या है तुम्हारा,
उमड़ता हुआ है समंदर।
डर लगता है इससे मुझको,
कहीं डूब न जाऊं मै अंदर।।
ये काली जुल्फे है तुम्हारी,
काली घटा भी इनसे हारी।
इनको जब तुम झटकती,
बिजली इनके आगे मटकती।।
ये आंखे क्या है तुम्हारी,
नीली झील से भी गहरी।
नौका विहार करूं मै इसमें,
जो दुनिया देखे मुझे सारी।।
ये मस्तक है जो तुम्हारा,
चमकता हुआ है सितारा।
इसमें सलवटे जब पड़ती,
बिजली भी इससे डरती।।
ये नाक क्या है तुम्हारी,
तोते से भी बहुत प्यारी।
इसमें नथ ऐसे चमकती,
मोती की तरह है दमकती।।
ये कान क्या है तुम्हारे,
तितलियों के पर है जैसे।
जब बालिया इनमें लटकाती,
तितलियां भी शरमा जाती।।
ये आवाज क्या है तुम्हारी,
कोयल से ज्यादा है प्यारी।
सुनता है जब कोई इनको,
दुनिया भूल जाता है सारी।।
ये होठ क्या है तुम्हारे
सारे गुलाब भी इनसे हारे।
अगर चूम लेता इनको कोई,
संकट मिट जाते उसके सारे।।
ये गरदन क्या है तुम्हारी,
सुराही भी इससे है हारी।
पीतीं जब कोई तुम शर्बत,
दंग हो जाते सब नर नारी।।
ये कपोल क्या है तुम्हारे
गुलाब भी फिरते मारे मारे।
जब इन पर हाथ कोई फिराता,
गुलाब के फूलो का आभास पाता
ये चाल क्या है तुम्हारी,
हिरणी की चाल इससे हारी।
होता अगर मै भी हिरण,
करता तुम पर मै सवारी।।
ये दांत है जो तुम्हारे
मोती भी इनसे है हारे।
जौहरी मै अगर होता,
माला इनकी एक पिरोता।।
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम