उत्तर प्रदेश के जनपद आगरा में ग्राम पंचायत रिहावली जो तहसील फतेहाबाद से करीब सत्रह किमी पूर्व दिशा में बसा है | इसी ग्राम रिहावली में एक प्राचीन शिव मंदिर है, जो महाकालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है | यमुना नदी के तट पर पूर्ण प्राकृतिक वातावरण में आध्यात्मिकता की अलख जगा रहा यह आश्रम अत्याधिक प्रसिद्ध है | यहाँ जिस किसी ने जो सच्चे हृदय से मांगा उसे वह मिला है |
मंदिर के इतिहास के सम्बन्ध में हमने गाँव के काफी लोगों से बात की परन्तु कोई सटीक इतिहास नहीं बता पाया | हाँ कुछ अंधविश्वास व झूठी कहानियाँ बड़े बूढ़ों व औरतों ने जरूर सुनाई | खैर हमें नकारात्मक विषयों पर बात नहीं करनी है | हम कुछ अच्छा करना चाहते हैं, अपनी प्राचीन धरोहरों को सजोना चाहते हैं, उन्हें सुरक्षित करना चाहते हैं |
आपको बतादें कि आज यह प्राचीन धरोहर जर-जर हो चुकी है | ग्राम पंचायत रिहावली की अनदेखी का शिकार यह शिव मंदिर आज संरक्षण की प्रतीक्षा कर रहा है | इसी कालेश्वर मंदिर की चौखट पर माथा रगड़-रगड़ कर, जल के लोटा उढ़ेल-उढ़ेल कर न जाने कितनों का भला हो चुका है, तमाम लोग बड़ी-बड़ी सरकारी नौकरियों में चले गये | परन्तु फिर पीछे मुड़कर कभी उन्होंने कालेश्वर आश्रम की सुध नहीं ली | हाँ गाँव के कुछ ज्यादा पढ़े-लिखे लोग हैं जो समय-समय पर आश्रम में किट्टी पार्टियां आयोजित करते रहते हैं | और आश्रम परिसर में प्रदूषण फैलाते रहते हैं | कुछ असामाजिक तत्वों ने कई बार आश्रम में चोरी की वारदातों को अंजाम भी दिया है | यह लेख लिखने से कुछेक दिन पहले ही एक साधु की लापरवाही के कारण आश्रम मंदिर के प्राचीन घंटे (बजने वाले यंत्र) चोरी हो गये | जिनकी रपट (शिकायत) तक ग्राम पंचायत रिहावली के किसी भी सदस्य ने नहीं की | वहीं अगर गाँव में किसी की बकरी पड़ोसी के खेत में घुस जाये तो उसे निकालने के लिए 100 नम्बर अब 112 वाले महाशय ही आते हैं |
महाकालेश्वर मंदिर के ठीक पास में ही एक सती मंदिर है, जो अब पूर्णतः धराशायी हो चुका है | उसके अवशेष ही देखे जा सकते हैं | हमें दुःख है कि कहीं प्रचीन कालेश्वर शिव मंदिर की भी दुर्दशा सती मंदिर जैसी न हो जाये | साथियों हम चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं |
गाँव रिहावली में स्थित यह शिव मंदिर वटेश्वर तीर्थ के समय का है | वटेश्वर धाम देश ही नहीं दुनियाभर में प्रसिद्ध है | जो फल बटेश्वर तीर्थ में जाने से प्राप्त होता है, वही शिव मंदिर रिहावली में प्राप्त होता है | ऐसी मान्यता है लोगों की | कुछ कहावतें तो ऐसी भी प्रचलित हैं कि वटेश्वर की स्थापना यहीं पर हो रही थी पर तब तक सुबह हो गई और देवदूत वापिस चले गए, फिर दूसरी रात उन्होंने बाह तहसील में बटेश्वर धाम नाम से मंदिर श्रृंखला का निर्माण किया | इसके अलावा कुछ लोगों का मानना है कि पुराने जमाने में राजा-महाराजा शिकार मारने जंगलों में जाते थे, जलमार्ग से व्यापार करते थे, इसीलिए रात्रि विश्राम, मार्ग विश्राम के वास्ते ही ऐसे आश्रमों का निर्माण करते थे और धार्मिक स्थान होने की वजह से स्थानीय लोग या चोर-लुटेरे इन्हें कोई क्षति भी नहीं पहुंचाते थे | खैर जो भी सत्य हो | लेकिन ऐसे प्राचीन निर्माण आज हमारे लिए अमूल्य धरोहर हैं | और इनका संरक्षण हमारा सर्वप्रथम कर्त्तव्य है |
साथियों ऐसी प्राचीन धरोहरों के संरक्षण के लिए आवाज उठायें | धरोहरें आपके आस पास हो सकती हैं | हमारे देश में प्राचीन स्मारकों की कोई कमी नहीं है | सर्वत्र उपलब्ध हैं | आप अपने क्षेत्र की प्राचीन धरोहरों के संरक्षण के लिए अपनी भूमिका का निर्वहन अवश्य करें |
- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
फतेहाबाद, आगरा