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यूं बिगड़ी है दुनिया की चाल देखिए।
क्यों इंसा यहाँ है बेहाल देखिए॥
इनके पापा बेचारे हैं जेल में पड़े।
और बेटी है घूमे नेपाल देखिए॥
ये भगवा पहन के हैं करते कुकर्म।
सारी काली है इनकी ये दाल देखिए॥
सफ़ेदी है बेटों के बालों चढ़ी।
पिताजी कर काले हैं बाल देखिए॥
जनता गरीबी से मरती रही।
होते नेता यहाँ मालामाल देखिए॥
भाई के भाई हैं दुश्मन बने।
है किसने खींची दीवाल देखिए॥
दुकां साहूकारों की सूनी पड़ी।
बिकता है चोरों का माल देखिए॥
दाल-रोटी भी थाली से गायब हुई।
मंडी में आया उछाल देखिए॥
झूठा या सच्चा न आता नज़र।
है कैसा ये माया का जाल देखिए॥
हुए जुर्मों के इतने आदी सभी।
खून में न रहा अब उबाल देखिए॥
लोग मुझसे अचानक से डरने लगे।
थोड़ा हुआ क्या कंगाल देखिए॥
#सुमित अग्रवाल
परिचय : सुमित अग्रवाल 1984 में सिवनी (चक्की खमरिया) में जन्मे हैं। नोएडा में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत श्री अग्रवाल लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य,कविता,ग़ज़ल के साथ ही ग्रामीण अंचल के गीत भी लिख चुके हैं। इन्हें कविताओं से बचपन में ही प्यार हो गया था। तब से ही इनकी हमसफ़र भी कविताएँ हैं।
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