तुम मेरा मौन हो….

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कहना चाहते हो तुम कई सारे भेद
अपने मन के लेकर मेरा हाथ अपने हाथों में।
सुनाना चाहते हो अपने दिल की हर धड़कन में
मेरे नाम का जिक्र निशब्द होकरआलिंगन कर बांहों में।
बीते हुए पल की सुखद अनुभूतियों के सुखद स्पंदन को
महसूस करना चाहते हो संग मेरे हमराज बनकर।
जीना चाहते हो लम्हा- लम्हा स्वप्निल से संसार में
संग मेरे ,मेरे हमसफ़र बनकर।
पल-पल टकटकी सी लगाकर मेरे इंतजार में
आबाज देते हैं मुझे मेरे हमजुबा़ होकर कहीं से।
सुनते रहते हो मेरे मन का अंर्तद्वंद
मेरे मौन से संवादों का मेरे हमबदन होकर।
लेकिन जीवन की कशमकश में भूल जाते हो
कुछ कहना है मुझसे और जुदा कर लेते हो
कुछ पल यादों के साए से हमसाया बनाकर।
अब तुम ही बताओ साथी कैसे कह दूं की
मन के अंतर्द्वंद से अंतर्मन में उपजी हुई हर हिलोर का तुम मेरा मौंन हो जबकि मैं तो तुम्हारे मौंन में हूं ।

स्मिता जैन

matruadmin

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