बांसुरी वादन से
खिल जाते थे कमल
वृक्षों से आँसू बहने लगते
स्वर में स्वर मिलाकर
नाचने लगते थे मोर
गायें खड़े कर लेती थी कान
पक्षी हो जाते थे मुग्ध
ऐसी होती थी बांसुरी तान
नदियाँ कलकल स्वरों को
बांसुरी के स्वरों में
मिलाने को थी उत्सुक
साथ में बहाकर ले जाती थी
उपहार कमल के पुष्पों के
ताकि उनके चरणों में
रख सके कुछ पूजा के फूल
ऐसा लगने लगता कि
बांसुरी और नदी
मिलकर करती थी कभी पूजा
जब बजती थी बांसुरी
घन ,श्याम पर बरसाने लगते
जल अमृत की फुहारें
अब समझ में आया
जादुई आकर्षण का राज
जो की आज भी जीवित
बांसुरी की मधुर तान में
माना हमने भी
बांसुरी बजाना
पर्यावरण की पूजा
करने के समान
जो की हर जीवों में
प्राण फूंकने की क्षमता रखती
और लगती /सुनाई देती
हमारी कर्ण प्रिय बांसुरी
#संजय वर्मा ‘दृष्टि’
परिचय : संजय वर्मा ‘दॄष्टि’ धार जिले के मनावर(म.प्र.) में रहते हैं और जल संसाधन विभाग में कार्यरत हैं।आपका जन्म उज्जैन में 1962 में हुआ है। आपने आईटीआई की शिक्षा उज्जैन से ली है। आपके प्रकाशन विवरण की बात करें तो प्रकाशन देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाओं का प्रकाशन होता है। इनकी प्रकाशित काव्य कृति में ‘दरवाजे पर दस्तक’ के साथ ही ‘खट्टे-मीठे रिश्ते’ उपन्यास है। कनाडा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता की है। आपको भारत की ओर से सम्मान-2015 मिला है तो अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी सम्मानित हो चुके हैं। शब्द प्रवाह (उज्जैन), यशधारा (धार), लघुकथा संस्था (जबलपुर) में उप संपादक के रुप में संस्थाओं से सम्बद्धता भी है।आकाशवाणी इंदौर पर काव्य पाठ के साथ ही मनावर में भी काव्य पाठ करते रहे हैं।