0
0
Read Time40 Second
भारत माता की जय बोलते बोलते
माॅं को ही सरे बाजार में बेचने चले हैं
संभाल कर रखना अपनी
बहन- बेटियों की आबरू को
अपने हिस्सों की जमीनों के टुकड़ों को
वतन परस्ती का ढोल पीटने वाले
निरंकुश होकर
अब सड़कों पर आतातायी बनकर
मातृभूमि का चोला उतारने चले हैं
शिखंडीओं की नाजायज
पौरूष विहीन होकर सत्ता अब
अपनी ही जल, जंगल और जमीन का सौदा करके
सोना, चांदी और हीरों से
अपना पेट पालने चले हैं।
स्मिता जैन
Post Views:
494