दर्द के दरिया में बहते जमाना हो गया!
तुम मिले डूबते को तिनके का सहारा हो गया!
मिटा न पाओगे अब ये हँसी मेरे होठों की
खुशियों का मसीहा ही जब हमारा हो गया!
ईद पर वो आए हैं घर मेरे मेहमां बन कर
गले मिलने को आज हंसी बहाना हो गया !
डूब ही जाती मैं मदभरी आँखों की झील में
झुका दी पलकें चूने झील का किनारा हो गया!
महबूब तेरी गलियाँ ही हैं मेरे काबा काशी
लो अब संभालो ये दिल तुम्हारा हो गया!
करो जतन कोई तो सपने में ही चले आओ
जी लगता नही मिले मुद्दतें यारा हो गया !
पेड़ों के झुरमुट से धीरे धीरे निकल रहा चाँद
कुमुदिनी खिली खूबसूरत हर नज़ारा हो गया!
परिचय
नाम-अनामिका मिश्रा
साहित्यिक उपनाम-दीपप्रिया
राज्य-झारखंड
शहर-राँची
शिक्षा-एम. ए/बी.एड
कार्यक्षेत्र-राँची/सी.बी.एस.सी 10+2 शिक्षिका
विधा -कविता, गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, लघुकथा इत्यादि
प्रकाशन-दो साझा काव्य संग्रह ,दैनिक भास्कर, वर्तमानअंकुर, बासुकी मेल, कादंबिनी में रचनाएं. प्रकाशित
सम्मान-अभी तक नही
ब्लॉग-नही
अन्य उपलब्धियाँ-यदा कदा कवि सम्मेलन का हिस्सा होना
लेखन का उद्देश्य-मन के उद्गारों को निकलना और समाज को एक नयी राह देने की कोशिश |