बनारस की सुबह, अस्सी घाट पर अविरल, निर्मल और मुल्क की शान ‘गंगा जी’ के किनारों पर एक बेहतरीन मुलाकात से सुनील चौरसिया ‘सावन’ के साथ मेरी दोस्ती परवान चढ़ी।
शायद वह 2018 का साल था, जब हमने अपनी दोस्ती की गंगा को भी महसूस किया।
मेरा अज़ीज़ दोस्त ‘सावन’ मेरी आगाजी ज़माने का दोस्त कवि है, जिसमें शारीरिक निर्मलता के साथ आध्यात्मिक निर्मलता का एहसास होता है। इनकी कविताएँ आपने बहुत पढ़ीं होंगी, लेकिन मैंने जहाँ तक सुनील को समझा है, उनकी सच्ची अक्कासी सद्य प्रकाशित काव्य संग्रह ‘हाय री ! कुमुदिनी’ में संकलित समसामयिक कविता ‘ भारत एक गुलदस्ता’ है।
मेरी दुआएँ हैं और ईश्वर / अल्लाह से दुआ भी, कि हम दोनों आने वाली नस्लों को मुहब्बत और आपसी जुड़ाव के साथ ‘कल्पना’, ‘मैं कौन हूँ’, ‘चिन्तन’ और ‘दिल में देशभक्ति’ लेकर इस खूबसूरत मुल्क ‘हिन्दुस्तान’ की हर एक जैहनियत से खिदमत करेंगे।
“’मजहब का नहीं है ऐ लोगों की अमानत है, चल मुल्क का हम तुझको आईन’ दिखाते हैं।
शायर रहबर नवाज
कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)