#अशोक सपड़ा हमदर्दपरिचय-दिल्ली निवासी अशोक सपड़ा हमदर्द जो 30 जनवरी 1977 को जन्में व इग्नु से स्नातक तक पढ़े जिनकी कई पत्र पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित होते है| अब तक दो काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके है|
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तुम रूठना सही मनाने आऊंगा
जिंदगी के खेल में हार जाऊँगा
जो गम लील रहे खुशियाँ तेरी
क़सम उन्हें दूर तुझसे भगाऊंगा
मेरी आगोश में प्यासा मरे कोई
मन्जूर दिल कैसे ये कर पाऊँगा
आहवान करता हूँ जिंदगी तेरा
तेरा साथ मरते दम निभाऊंगा
कलकल करती भाव से मेरी
कविता मैं ऐसी एक बनाऊंगा
जिसको देखों दिल दुखाता है
उसकी बातों पे मैं मुस्कुराऊंगा
बहुत आजमाया जिसने मुझे
आज उसको मैं आजमाऊँगा
आसुंओ में डुबाकर क़लम
तराने इश्क़ के लिखवाऊंग