उनकी मोहब्बत ने मुझे,
लिखना सीखा दिया।
लोगों के मन को,
पढ़ना सीखा दिया।
बहुत कम होंगे जो मुझे,
पढ़ने की कोशिश करते है।
क्योंकि जमाने वालो ने तो,
मुझे पागल बना दिया था।
न धोका हमने खाया है,
न धोका उसने दिया है।
बस जिंदगी ने ही एक,
नया खेल खेला है।
जो न कह सकते है,
और न सह सकते है।
बस बची हुई जिंदगी को,
जीने की कोशिश कर रहे है।
और लोगों को मोहब्बत की
परिभाषा समझा रहा हूँ।।
चिराग जलाया करते थे,
अंधेरों में रोशनी के लिए।
तभी तो जिंदगी ने अब,
अंधेरा कर दिया।
देखकर रोशनी को,
अब हम डर जाते है।
की कही अंधेरों से भी,
अब नाता न छूट जाये।।
जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन (मुम्बई)