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अपनी ज़िद में अड़े मिलना
हो मुसीबत तो खड़े मिलना
मुझे फक्र है तुम साथी हो
दिल के भी तुम बड़े मिलना
पोछोगे मेरे गिरते आँसू को
इरादों से तुम कड़े मिलना
नहीं खून के रिश्ते माना कि
मगर इंसानियत में बड़े मिलना
-किशोर छिपेश्वर”सागर”
बालाघाट
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