इसे जनसाधारण की बदनसीबी कहें या निराशावाद कि,खबरों की आंधी में उड़ने वाले सूचनाओं के जो तिनके दूर से उन्हें रसगुल्ले जैसे प्रतीत होते हैं,वही नजदीक आने पर गुलगुले-से बेस्वाद हो जाते हैं। `मैंगो मैन` के पास खुश होने के हजार बहाने हो सकते हैं,लेकिन मुश्किल यह है कि,कुछ देर बाद ही यह बदगुमानी साबित होती है। पहली बार बैंक का एटीएम हाथ में लिया तो बताया गया कि,इससे आप जब चाहे पैसे निकाल सकते हैं,लेकिन अब इस पर हर रोज नया-नया फरमान सुनने को मिल रहा है…कि,इतनी बार निकाला तो भरो सर्विस चार्ज। कितनी ही सरकारों के कार्यकाल में मैने सुना कि सरकार ने आयकर का दायरा बढ़ा दिया है। इससे मैं खुश हो गया कि,अब शायद मुझे टैक्स के तौर पर उस राशि का भुगतान नहीं करना पड़ेगा,जिसे वापस पाने के लिए मुझे ढेरों पुड़िया तलनी पड़ती है या यूं भी कह सकते हैं कि,कम-से-कम एक जोड़ी चप्पलों की कुर्बानी तो देनी ही पड़ती है,लेकिन अब तक बेवजह देने और फिर भारी जिल्लतें झेलने के बाद लेने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। अनेक बार सूचना मिली कि,सरकार ने रोमिंग खत्म कर दी है,लेकिन प्रदेश क्या,जिले से बाहर कदम रखते ही मोबाइल के पटल पर संदेश आ जाता है …`स्वागतम…अब आप रोमिंग पर हैं।` कुछ दिन पहले प्रदेश से बाहर जाना हुआ तो,सूबे की सीमा लांघते ही संदेश मिला..`अब आप रोमिंग पर हैं..अब आपका नेट पैक रोमिंग के हिसाब से काटा जाएगा।` सरकारी कार्य के लिए आधार कार्ड जरूरी है या नहीं,इसे लेकर इतनी तरह की सूचनाएं मिलती है व तर्क-वितर्क होते रहते हैं कि,दूसरों की तरह मैं भी बुरी तरह से भ्रमित हो चुका हूं कि,हर सरकारी कार्य के लिए आधार जरूरी है या नहीं। अबलत्ता उस रोज पहले पन्ने पर छपी उस खबर से हिम्मत बंधी कि,`अब आपका अंगूठा ही आपका बैंक होगा।` इस सुसंवाद से मैं रसगुल्ले जैसे स्वाद की अनुभूति कर ही रहा था कि,फिर उस मुनादी ने जायका बिगाड़ दिया कि…`फलां बैंक की ओर से खाताधारकों को सूचित किया जाता है कि,अमुक तारीख तक अपना-अपना आधार कार्ड अवश्य ही बैंक में जमा करा दें,अन्यथा आपका खाता बंद हो सकता है।` आधार कार्ड की असल व छाया लेकर भागा-भागा बैंक पहुंचा तो वहां मेरे जैसे दर्जनों पहले से जमा थे। अनुभव ऐसा हुआ कि,मानो हम अपराधी और सामने कुर्सी पर बैठे बाबू पुलिस या सीबीआई अधिकारी। ससे मुझे वह अनुभव याद आया-जब मैं `गुड फील` करता हुआ खाता `अप-टू-डेट` कराने बैंक गया था। खाता हाथ में लेते ही संबंधित अधिकारी मुझे खा जाने वाली नजरों से घूरने लगा। मैंने कारण जानना चाहा तो,खिड़की के भीतर से घूरते हुए उसने मुझसे पूछा…आप कितने दिन बाद खाता `अप-टू-डेट` कराने आए हैं। इस पर मैने आत्मविश्वास भरे लहजे में कहा…भैया सरकार तो कहती है…अब हमारा अंगूठा ही हमारा बैंक खाता होगा…फिर क्या फर्क पड़ता है…,इस पर बुरा-सा मुंह बनाते हुए वह बैंक कर्मचारी चुनाव में खड़े उम्मीदवार की तरह देर तक बड़बड़ाता रहा। रसगुल्लों-सा अहसास कराने वाली सूचनाओं के गुलगुले में तब्दील होने का सिलसिला यही नहीं रुकता। कुछ दिन पहले वह संवाद मुझे खुशखबरी की तरह लगा था,जिसमें कहा गया था कि अब प्रमाण-पत्रों को आवेदक स्व-सत्यापित करेंगे। इसके लिए किसी राजपत्रित अधिकारी के सत्यापन की आवश्यकता नहीं होगी,लेकिन व्यवहार में कुछ अलग ही दिखाई पड़ता है। छोटी-छोटी-सी बात पर सरकारी अधिकारी इस तरह पेश आते हैं,मानो उनका सामना दाऊद इब्राहिम से हो रहा हो। किसी भी तरह के किंतु-परंतु सुनने को वे तैयार ही नहीं होते। इन बुरे अनुभवों को झेलते हुए मैं निराशा के समुद्र में हिचकोले खाने लगता हूं। याद आते हैं बचपन के वे दिन,जब किसी-न-किसी बात को लेकर सप्ताह के चार-पांच दिन हमें कतार में ही खड़े होना पड़ता था। कभी राशन,तो कभी केरोसिन के लिए। कभी पता चलता कि,अमुक चीज की राशनिंग हो गई है। कतार में खड़े होकर ही पाव-छटांक भर पाया जा सकता है। अभिभावकों का `वीटो` लग जाता कि सारे कार्य छोड़,पहले इस चीज के लिए कतार में लगो..क्योंकि पता नहीं,कब यह बाजार से गायब हो जाए। तब हम सोचते थे कि बड़े होने पर हमें कतार में खड़े होने की मजबूरी से छुटकारा मिल जाएगा,लेकिन यह सिलसिला तो अब भी जस-का-तस कायम है। किसी-न-किसी बात को लेकर सरकारी दफ्तरों व अधिकारियों की गणेश परिक्रमा तो अब भी जारी है। सोचता हूं फिर इन चार दशकों में क्या बदला…? सरकारी महकमों के लोहे या टीन के साइन बोर्ड डिजिटल होकर ग्लोसाइन में तब्दील हो गए,लेकिन दफ्तरों का रवैया तो अब भी वही पुराना है।
#तारकेश कुमार ओझा
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं
माँ असीमित है, माँ अविरल है, माँ अद्वितीय है, माँ निश्छल है, माँ खुदा है,माँ ईश्वर है, माँ दुआ है ,माँ परमेश्वर है। माँ धरा है,माँ आसमान हैं, माँ जहान है,माँ महान है माँ मन्नत है!माँ जन्नत है, माँ सुकून है, माँ शांति है, माँ शीतल है, माँ धैेर्य है, […]
आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है।
आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं।
मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया।
इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं।
हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।