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फाल्गुन मे फाग उड़ाए सखी तूने,
अब चैत्र का मास आ गयो है।
धरा बसंती अब हो गई है,
मस्ती का मौसम छा गयो है।
कोयल कूक रही बागन में,
आम पर बौर आ गयो है।
भौरे मंडरा रहे है फूलों पर,
मिलन का मौसम आ गयो है।।
छोटी छोटी अमियां आने लगी है,
दिल को मेरे काफी भाने लगी है।
जी मेरा अब मिचलाने लगा है,
पिया का घर अब भाने लगा है।
मन में उन्माद छा गयो है,
दिल मेरा घबरा गयो है।।
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम
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