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गाँव की औरतें
घड़े को सिर पर उठाकर,
हँसते हुए – घर में हँसी – ठिठोली करते हुए,
अगर थोड़ा भी पास से,
उनका कुआं हो सकता है
पाने के लिए संघर्ष कर रहा है
पास भी नल
अगर होशपूर्वक नहीं
कितनी बार से
कुआं बाद लौटा
पानी भरना,।
कितना समय बर्बाद किया,
उसका सिर केवल पानी ढो रहा था,
हमेशा किताबों से दूर रहता था।
खान मनजीत भावड़िया मजीद
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