बूंद-बूंद पानी का
प्रवाह देता है एक धारा को
पतली -पतली सी धाराएं
गति देती हैं एक नदी को
बलखाती ,इठलाती
अठखेलियां करती
चलती है अपनी ही
यौवन की मस्ती में
जीवन को पोषित करती है
बाधाओं को अपने
प्रचंड प्रवाह से
लांघती पार करती हैं
अनंत ऊंचाइयों, गहराइयों को
निर्जन को लहलहा देती है
अपने मीठे पानी से
ना विलाप करती करती
ना दोष देती
अनवरत, अनथक
बस कल -कल करके
बहती जाती है
किंतु
अपने उपेक्षा और तिरस्कार से
छोड़ देती है अपने तट बंधों को
सिमट जाती है खुद में
सिकुड़ जाता है वह
अनवरत -अनथक प्रवाह
जीवन का गीत
अर्थ खो देता है
फिर ना तो उसे सागर से मिलन की
चाहत रह जाती हैं
और नाही हिमखंड में
अपने वजूद को अमर करने की लालसा
बस रह जाता है
चलना
उसका शेष ।
#स्मिता जैन